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________________ ६०४ उत्तराध्ययनसूत्र ५२. चत्तारि य गिहिलिंगे अन्नलिंगे दसेव य। सलिंगेण य अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई। [५२] एक समय में चार गृहस्थलिंग से, दस अन्यलिंग से तथा एक सौ आठ जीव स्वलिंग से सिद्ध हो सकते हैं। ५३. उक्कोसोगाहणाए य सिझन्ते जुगवं दुवे। चत्तारि जहन्नाए जवमझऽठुत्तरं सयं।। [५३] (एक समय में) उत्कृष्ट अवगाहना में दो, जघन्य अवगाहना में चार और मध्यम अवगाहना में एक सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते हैं। ५४. चउरुड्ढलोए य दुवे समुद्दे तओ जले वीसमहे तहेव। सयं च अठुत्तर तिरियलोए समएणेगेण उ सिज्झई उ।। ___ [५४] एक समय में ऊर्ध्वलोक में चार, समुद्र में दो, जलाशय में तीन, अधोलोक में बीस एवं तिर्यक् लोक में एक सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते हैं। ५५. कहिं पडिहया सिद्धा? कहिं सिद्धा पइट्ठिया?। ___ कहिं बोन्दिं चइत्ताणं? कत्थ गन्तूण सिज्झई।। (५५) [प्र.] सिद्ध कहाँ रुकते हैं? कहाँ प्रतिष्ठित होते हैं? शरीर को कहाँ छोड़कर कहाँ जा कर सिद्ध होते हैं? ५६. अलोए पडिहया सिद्धा लोयग्गे य पइट्ठिया। __ इहं बोन्दिं चइत्ताणं तत्थ गन्तूण सिज्झई। ___[५६] [उ.] सिद्ध अलोक में रुक जाते हैं। लोक के अग्रभाग में प्रतिष्ठित हैं। मनुष्यलोक में शरीर को त्याग कर, लोक के अग्रभाग में जा कर सिद्ध होते हैं। ५७. बारसहिं जोयणेहिं सव्वट्ठस्सुवरि भवे। ईसीपब्भारनामा उ पुढवी छत्तसंठिया। ५८. पणयालसयसहस्सा जोयणाणं तु आयया। ___तावइयं चेव वित्थिण्णा तिगुणो तस्सेव परिरओ। ५९. अट्ठजोयणबाहल्ला सा मज्झम्मि वियाहिया। परिहायन्ती चरिमन्ते मच्छियपत्ता तणुयरी।। [५७-५८-५९] सर्वार्थसिद्ध विमान से बारह योजन ऊपर ईषत्-प्राग्भारा नामक पृथ्वी है; वह छत्राकार है। उसकी लम्बाई पैंतालीस लाख योजन की है, चौड़ाई भी उतनी ही है। उसकी परिधि उससे तिगुनी (अर्थात् १,४२,३०,२४६ योजन) है। मध्य में वह आठ योजन स्थूल (मोटी) है। फिर क्रमशः पतली होती-होती अन्तिम भाग में मक्खी के पंख से भी अधिक पतली हो जाती है। ६०. अज्जुणसुवण्णगमई सा पुढवी निम्मला सहावेणं। उत्ताणगछत्तगसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ।।
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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