________________
तुलना कीजिए
समीक्षात्मक अध्ययन / ६९
समयाए समणो होइ, बम्भचेरेण बम्भणो । नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो ॥ कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥
|
समितत्ता हि पापानं समणो ति पयुच्चति ॥
पापानि परिवज्जेति स मुनी तेन सो मुनी यो मुनाति उभो लोके मुनी तेन पवुच्चति ॥ न जच्चा ब्राह्मणो होति, न जच्चा होति अब्राह्मणो । कम्मुना ब्राह्मणो होति, कम्मुना होति अब्राह्मणो ॥ कस्सको कम्मुना होति, सिप्पिको होति कम्मुना । वाणिजो कम्मुना होति,
समाचारी एक विश्लेषण
:
- [ उत्तराध्ययन २५ / ३२, ३३]
- [ धम्मपद १९ / १०]
पेस्सिको होति कम्मुना॥ [ सुत्तनिपात महा. ९/५७, ५८]
न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो ।
कम्मुना बसलो होति, कम्मुना होति ब्राह्मणो ॥ [ सुत्तनिपात डर. ७/२१, २७]
॥
- [ धम्मपद १९ / १४]
२४४, उत्तराध्ययन, अध्ययन २६ २४७. समदा सामाचारी, सम्माचारी समो व आचारो
सव्वेसि सम्माणं समाचारो हु आचारो मूलाचार गा. १२३
छब्बीसवें अध्ययन में समाचारी का निरूपण है। समाचारी जैन संस्कृति का पारिभाषिक शब्द है। शिष्ट जनों के द्वारा किया गया क्रिया-कलाप समाचारी है। १४४ उत्तराध्ययन में ही नहीं, भगवती २४५ स्थानांग २४६ आदि अन्य आगमों में भी समाचारी का वर्णन मिलता है। आवश्यक नियुक्ति में भी समाचारी पर चिन्तन किया गया है दृष्टिवाद के नौवें पूर्व की आचार नामक तृतीय वस्तु के बीसवें ओप्राभूत में समाचारी के सम्बन्ध में बहुत ही विस्तार के साथ निरूपण था । पर वह वर्णन सभी श्रमणों के लिए सम्भव नहीं था । जो महान् मेधावी सन्त होते थे, उनका अध्ययन करते थे । अतः आगम-मर्मज्ञ आचार्यों ने सभी सन्तों के लाभार्थ ओघनियुक्ति आदि ग्रन्थों का निर्माण किया। प्रवचनसारोद्धार, धर्मसंग्रह आदि उत्तरवर्ती ग्रन्थों में भी समाचारी का निरूपण है उपाध्याय यशोविजयजी ने समाचारीप्रकरण नामक स्वतंत्र ग्रन्थ की रचना की है।
२४५. भगवतीसूत्र, २५/१७
श्रमणाचार के वृत्तात्मक आचार और व्यवहारात्मक आचार ये दो भेद हैं। महाव्रत वृत्तात्मक आचार है और व्यवहारात्मक आचार समाचारी है। समाचारी के ओघ समाचारी और पदविभाग समाचारी ये दो भेद हैं। प्रथम समाचारी का अन्तर्भाव धर्मकथानुयोग में और दूसरी समाचारी का अन्तर्भाव चरणकरणानुयोग में किया गया है। आवश्यकनियुक्ति में समाचारी के ओघसमाचारी, दशविध समाचारी और पदविभाग समाचारी ये तीन प्रकार बतलाए हैं। ओघसमाचारी का प्रतिपादन ओघनियुक्ति में किया गया है और पदविभाग समाचारी छेदसूत्र में वर्णित हैं।
दिगम्बरग्रन्थों में समाचारी के स्थान पर 'समाचार' और 'सामाचार' ये दो शब्द आये हैं। आचार्य वट्टकेर
२४६. स्थानांग १०, सूत्र ७४९