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छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति
५९७ समयक्षेत्र का अर्थ—समयक्षेत्र का दूसरा नाम मनुष्यक्षेत्र है; क्योंकि मनुष्य केवल समयक्षेत्र में ही पाए जाते हैं। क्षेत्र की दृष्टि से समयक्षेत्र जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और अर्धपुष्कर, इन ढाई द्वीपों तक ही सीमित है। इस कारण इन अढाई द्वीपों की संज्ञा ही समयक्षेत्र है। रूपी-अजीव निरूपण
१०. खन्धा य खन्धदेसा य तप्पएसा तहेव य।
परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चउव्विहा॥ [१०] रूपी अजीव द्रव्य चार प्रकार का है—स्कन्ध, स्कन्ध-देश, स्कन्ध-प्रदेश और परमाणु ।
११. एगत्तेण पुहत्तेण खन्धा य परमाणुणो।
लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उ खेत्तओ॥
इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं। [११] परमाणु एकत्वरूप होने से अर्थात् अनेक परमाणु एक रूप में परिणत होकर स्कन्ध बन जाते हैं, और स्कन्ध पृथक् रूप होने से परमाणु बन जाते हैं। (यह द्रव्य की अपेक्षा से है।) क्षेत्र की अपेक्षा से वे (स्कन्ध और परमाणु) लोक के एक देश में तथा (एक देश से लेकर) सम्पूर्ण लोक के भाज्य (-असंख्यविकल्पात्मक) हैं । यहाँ से आगे उनके (स्कन्ध और परमाणु के) काल की अपेक्षा से चार प्रकार का विभाग कहूँगा।
१२. संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया वि य।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ [१२] सन्तति-प्रवाह की अपेक्षा से वे (स्कन्ध आदि) अनादि और अनन्त हैं तथा स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं।
१३. असंखकालमुक्कोसं एगं समयं जहन्निया।
अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा वियाहिया।। [१३] रूपी अजीवों-पुद्गल द्रव्यों की स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट असंख्यात काल की कही गई है।
१४. अणन्तकालमुक्कोसं एगं समयं जहन्नयं।
अजीवाण य रूवीणं अन्तरेयं वियाहियं ।। [१४] रूपी अजीवों का अन्तर (अपने पूर्वावगाहित स्थान) से च्युत होकर उसी स्थान पर कहा गया फिर आने तक का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल है।
१५. वण्णओ गन्धओ चेव रसओ फासओ तहा।
संठाणओ य विनेओ परिणामो तेसि पंचहा। १. (क) प्रज्ञापना पद १ वृत्ति, अ. रा. कोष भा. १ पृ. २०६
(ख) स्थानांग स्था. ४/१/२६४ वृत्ति, पत्र १९०