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उत्तराध्ययनसूत्र [१५] उनका (स्कन्धं आदि का) परिणमन वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से पांच प्रकार का है।
१६. वण्णओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया।
किण्हा नीला य लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा।। [१६] जो (स्कन्ध आदि रूपी अजीव) पुद्गल वर्ण से परिणत होते हैं, वे पांच प्रकार से परिणत होते हैं—कृष्ण, नील, लोहित (रक्त), हारिद्र (पीत) अथवा शुक्ल (श्वेत)।
१७. गन्धओ परिणया जे उ दुविहा ते वियाहिया।
सुब्भिगन्धपरिणामा दुब्धिगन्धा तहेय य॥ [१७] जो पुद्गल गन्ध से परिणत होते हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं— सुरभिगन्धपरिणत और दरभिगन्धपरिणत।
१८. रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया।
तित्त-कडुय-कसाया अम्बिला महुरा तहा।। [१८] जो पुद्गल रस से परिणत हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं—तिक्त (चरपरा-तीखा), कटु, कषाय (कसैला), अम्ल (खट्टा) और मधुर रूप में परिणत।
१९. फासओ परिणया जे उ अट्ठहा ते पकित्तिया।
कक्खडा मउया चेव गरुया लहुया तहा।। २०. सीया उण्हा य निद्धा य य तहा लुक्खा व आहिया।
इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया।। [१९-२०] जो पुद्गल स्पर्श से परिणत हैं, वे आठ प्रकार के कहे गए हैं-कर्कश, मृदु, गुरु और लघु (हलका); शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । इस प्रकार ये स्पर्श से परिणत पुद्गल कहे गए हैं।
२१. संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया।
परिमण्डला य वट्टा तंसा चउरंसमायया।। [२१] जो पुद्गल संस्थान से परिणत हैं, वे पांच प्रकार के हैं—परिमण्डल, वृत, त्यत्र (त्रिकोण), चतुरस्र (चौकोर) और आयत (लम्बे)।
२२. वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गन्धओ।
रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। [२२] जो पुद्गल वर्ण से कृष्ण है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य (-अनेक विकल्पों वाला) है।
२३. वण्णओ जे भवे नीले भइए से उ गन्धओ।
रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य।। [२३] जो पुद्गल वर्ण से नील है, वह गन्ध से, स्पर्श से और संस्थान से भाज्य है।