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________________ ५८० उत्तराध्ययनसूत्र [३४] कृष्णलेश्या की स्थिति जघन्य (कम से कम) मुहूर्तार्द्ध (अर्थात्-अन्तर्मुहूर्त) की है और उत्कृष्ट एक मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की जाननी चाहिए। ३५. मुहत्तद्धं तु जहन्ना दस उदही पलियमसंखभागमब्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा नीललेसाए॥ [३५] नीललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की समझनी चाहिए। ३६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तिण्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया। ___ उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा काउलेसाए॥ [३६] कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम प्रमाण समझनी चाहिये। ३७. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दो उदही पलियमसंखभागमब्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसाए॥ । [३७] तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की जाननी चाहिये। ३८. मुहत्तद्धं तु जहन्ना दस होन्ति सागरा मुहुत्तऽहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा पम्हलेसाए॥ [३८] पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की समझनी चाहिये। ___३९. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीसं सागरा मुहत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए॥ [३९] शुक्लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की है। ४०. एसा खलु लेसाणं आहेण ठिई उ वणिया होई। चउसु वि गईसु एत्तो लेसाण दिइंतु वोच्छामि॥ [४०] लेश्याओं की यह स्थिति औधिक (सामान्य रूप से) वर्णित की गई है। अब चारों गतियों की अपेक्षा से लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा। ४१. दस वाससहस्सइं काऊए ठिई जहन्निया होइ। तिण्णुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा॥ [४१] कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है, और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है। ४२. तिण्णुदही पलिय मसंखभागा जहन्नेण नीलठिई। दस उदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा॥
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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