SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययन/६४. उसमें स्वर्ण, सुपारी आदि अनेक वस्तुएँ होती थीं। उस समय भारत में स्वर्ण अत्यधिक मात्रा में था, जिसका निर्यात दूसरे देशों में होता था। इस प्रकार सामुद्रिक व्यापार बहुत उन्नत अवस्था में था। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि उस युग में जो व्यक्ति तस्करकृत्य करता था, उसको उग्र दण्ड दिया जाता था। वधभूमि में ले जाकर वध किया जाता था। वह लालवस्त्रों से आवेष्टित होता, उसके गले में लाल कनेर की माला होती, जिससे दर्शकों को पता लग जाता कि इसने अपराध किया है। यह कठोर दण्ड इसलिये दिया जाता कि अन्य व्यक्ति इस प्रकार के अपराध करने का दुस्साहस न करें। तस्करों की तरह दुराचारियों को भी शिरोमुण्डन, तर्जन, ताडन, लिङ्गच्छेदन, निर्वासन और मृत्यु प्रभृति विविध दण्ड दिये जाते थे। सूत्रकृतांग,२०६ तिशीथचूर्णि, २१° मनुस्मृति,२११ याज्ञवल्क्यस्मृति२१२ आदि में विस्तार से इस विषय का निरूपण है। प्रस्तुत अध्ययन में उस युग की राज्य-व्यवस्था का भी उल्लेख है। भारत में उस समय अनेक छोटे-मोटे राज्य थे। उनमें परस्पर संघर्ष भी होता था। अत: मुनि को उस समय सावधानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का सूचन किया गया है। अरिष्टनेमि और राजीमती बाईसवें अध्ययन में अन्धक कुल के नेता समुद्रविजय के पुत्र रथनेमि का वृत्तान्त है। रथनेमि अरिष्टनेमि अर्हत् के लघुभ्राता थे। राजीमती का वैवाहिक सम्बन्ध अरिष्टनेमि से तय हुआ था किन्तु विवाह के कुछ समय पूर्व ही अरिष्टनेमि को वैराग्य हो गया और वे मुनि बन गये। अरिष्टनेमि के प्रव्रजित होने के पश्चात् रथनेमि राजीमती पर आसक्त हो गये। किन्तु राजीमती का उपदेश श्रवण कर रथनेमि प्रव्रजित हुए। एक बार पुनः रैवतक पर्वत पर वर्षा से प्रताड़ित साध्वी राजीमती को एक गुफ़ा में वस्त्र सुखाते समय नग्न अवस्था में देखकर रथनेमि विचलित हो गये। राजीमती के उपेदश से वे पुनः संभले और अपने दुष्कृत्य पर पश्चात्ताप करते हैं। जैन साहित्य के अनुसार राजीमती उग्रसेन की पुत्री थी। विष्णु पुराण के अनुसार उग्रसेन की चार पुत्रियाँ थी-कंसा, कंसवती, सुतनु और राष्ट्रपाली।२१३ इस नामावली में राजीमती का नाम नहीं आया है। यह बहुत कुछ सम्भव है-सुतनु ही राजीमती का अपरनाम रहा हो। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन की ३७वीं गाथा में रथनेमि राजीमती को 'सुतनु' नाम से सम्बोधित करते हैं। प्रस्तुत अध्ययन में अन्धकवृष्णि शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन हरिवंश पुराण के अनुसार यदुवंश का उद्भव हरिवंश से हुआ है। यदुवंश में नरपति नाम का एक राजा था। उसके शूर और सुवीर ये दो पुत्र थे। सुवीर को मथुरा का राज्य दिया गया और शूर को शौर्यपुर का। अन्धकवृष्णि आदि शूर के पुत्र थे और भोजकवृष्णि आदि सुवीर के पुत्र थे। अन्धक-वृष्णि की प्रमुख रानी का नाम सुभद्रा था। उनके दस पुत्र हुए, जो निम्नलिखित हैं-(१) समुद्रविजय, (२) अक्षोभ्य, (३) स्तमित सागर, (४) हिमवान्, (५) विजय, (६) अचल, (७) धारण, (८) पूरण, (९) अभिचन्द्र, (१०) वसुदेव। ये दसों पुत्र दशाह के नाम से विश्रुत हैं। अन्धकवृष्णि की (१) कुन्ती, (२) मद्री ये दो पुत्रियाँ थीं। भोजकवृष्णि की मुख्य पत्नी पद्मावती थी। उसके उग्रसेन, महासेन और देवसेन ये तीन पुत्र हुए।२१४ उत्तरपुराण में देवसेन के स्थान पर महाद्युतिसेन नाम आया है।२१५ उनके एक पुत्री भी थी, जिसका नाम गांधारी था। २०९. सूत्रकृतांग–४/१/२२. २१०. निशीथचूर्णि-१५/५०६०की चूर्णि. २११. मनुस्मृति-८/३७४. २१२. याज्ञवल्क्य स्मृति–३/५/२३२. २१३. विष्णुपुराण ४/१४/२१ २१४, हरिवंशपुराण १८/६-१६ आचार्य जिनसेन २१५. उत्तरपुराण ७०/१०
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy