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उत्तराध्ययन/६०. इनकी माता का नाम जयन्ती और लघुभ्राता का नाम दत्त था।
___'विजय' द्वारकावती नगरी के राजा ब्रह्मराज के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सुभद्रा था तथा लघुभ्राता का नाम द्विपृष्ठ था। नेमिचन्द्र ने उत्तराध्ययनवृत्ति में लिखा है-आवश्यकचूर्णि में 'नन्दन' और 'विजय' इनका उल्लेख है। हम उसी के अनुसार उनका यहाँ पर वर्णन दे रहे हैं। यदि यहाँ पर वे दोनों व्यक्ति दूसरे हों तो आगम-साहित्य के मर्मज्ञ उनकी अन्य व्याख्या कर सकते हैं।१८५ इससे यह स्पष्ट है कि नेमिचन्द्र को इस सम्बन्ध में अनिश्चितता थी। शान्त्याचार्य ने अपनी टीका में इस सम्बन्ध में कोई चिन्तन प्रस्तुत नहीं किया है। काशीराज और विजय के पूर्व उदायन राजा का उल्लेख हुआ है, जो श्रमण भगवान् महावीर के समय में हुए थे। उनके बाद बलदेवों का उल्लेख संगत प्रतीत नहीं होता। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन में पहले तीर्थंकर, चक्रवर्ती, और राजाओं के नाम क्रमशः आये हैं, इसीलिए प्रकरण की दृष्टि से महावीर युग के ही ये दोनों व्यक्ति होने चाहिए । स्थानांग सूत्र में १८६ भगवान् महावीर के पास आठ राजाओं ने दीक्षा ग्रहण की, उसमें काशीराज शंख का भी नाम है। सम्भव है, काशीराज से शंख राजा का यहाँ अभिप्राय हो। भगवान् महावीर के पास प्रव्रज्या ग्रहण करने वाले राजाओं में विजय नाम के राजा का उल्लेख नहीं है। पोलासपुर में विजय नाम के राजा थे। उनके पुत्र अतिमुक्त कुमार ने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली परन्तु उनके पिता ने भी दीक्षा ली, ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं है।१८७ विजय नाम का एक अन्य राजा भी भगवान् महावीर के समय हुआ था, जो मृगगाँव नगर का था। उसकी रानी का नाम मृगा था।८८ वह दीक्षित हुआ हो, ऐसा भी उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। विज्ञों के लिए अन्वेषणीय है।
महाबल राजा का भी नाम इस अध्ययन में आया है। टीकाकार नेमिचन्द्र ने महाबल की कथा विस्तार से उट्टंकित की है१८९ और उनका मूल स्रोत उन्होंने भगवती बताया है।१९० महाबल हस्तिनापुर के राजा बल के पुत्र थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। वे तीर्थंकर विमलनाथ की परम्परा के आचार्य धर्मघोष के पास दीक्षित हुए थे। बारह वर्ष श्रमण-पर्याय में रह कर वे ब्रह्मदेवलोक में उत्पन्न हुए। वहाँ से वाणिज्य ग्राम में श्रेष्ठी के पुत्र सुदर्शन बने। उन्होंने भगवान् महावीर के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। यह कथा देने के पश्चात् नेमिचन्द्र ने लिखा है-महाबल यही है अथवा अन्य, यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते। हमारी दृष्टि से ये महाबल अन्य होने चाहिए। यह अधिक सम्भव है कि विपाकसूत्र में आये हुए महापुर नगर का अधिपति बल का पुत्र महाबल हो।१९१
इस प्रकार अठारहवें अध्ययन में तीर्थंकर और चक्रवर्ती राजाओं का निरूपण हुआ है, जो ऐतिहासिक और प्राग्-ऐतिहासिक काल में हुए हैं और जिन्होंने साधना-पथ को स्वीकार किया था। इनके साथ ही दशार्ण, कलिंग, पांचाल, विदेह, गांधार, सौवीर, काशी आदि जनपदों का भी उल्लेख हुआ है। साथ ही भगवान् महावीर के युग में प्रचलित क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद, अज्ञानवाद, आदि वादों का भी उल्लेख हुआ है। अठारहवें अध्ययन में इस तरह प्रचुर सामग्री रही हुई है।
उन्नीसवें अध्ययन में मृगा रानी के पुत्र का वर्णन होने के अध्ययन का नाम 'मृगापुत्र' रखा गया है। एक बार महारानियों के साथ आनन्द-क्रीड़ा करते हुए मृगापुत्र नगर की सौन्दर्य-सुषमा निहार रहे थे। उनकी दृष्टि राजमार्ग पर चलते हुए एक तेजस्वी मुनि पर गिरी। वे टकटकी लगाकर मंत्रमुग्ध से उन्हें देखते रहे। मृगापुत्र १८५. उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति, पत्र-२५६ १८६. स्थानांग सूत्र, ठाणा ८, सूत्र ४१ १८७. अन्तगडदशा सूत्र, वर्ग ६
१८८. विपाकसूत्र, श्रुतस्कन्ध १, अध्ययन १ १८९. व्याख्याप्रज्ञप्ति
१९०. उत्तराध्ययन, सुखबोधावृत्ति, पत्र २५९ १९१. विपाकसूत्र, श्रुतस्कन्ध-२, अध्ययन-७