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________________ ४८४ उत्तराध्ययनसूत्र ५६-५८. मन-वचन-कायसमाधारणता का परिणाम ५७. मणसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मणसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ। एगग्गंजणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ। नाणपजवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ, मिच्छत्तं, च निजरेइ। [५७ प्र.] भन्ते ! मन की समाधारणता से जीव को क्या प्राप्त होता है? [उ.] मन की समाधारणता से जीव एकाग्रता प्राप्त करता है। एकाग्रता प्राप्त करके (वह) ज्ञानपर्यवों को प्राप्त करता है। ज्ञानपर्यवों को प्राप्त करके सम्यक्त्व को विशुद्ध करता है और मिथ्यात्व की निर्जरा करता है। ५८. वयसमाहारणयाए णं भन्ते ! किं जणयइ ? वयसमाहारणयाए णं वयसाहारणदसणपज्जवे विसोहेइ। वयसाहारणदंसणाजवे विसोहेत्ता सुलहबोहियत्तं निव्वत्तेइ, दुल्लहबोहियत्तं निजरेइ। [५८ प्र.] भन्ते ! वाक्समाधारणता से जीव को क्या प्राप्त होता है? [उ.] वाक्समाधारणता से जीव वाणी के विषयभूत (साधारण वाणी से कथनयोग्य पदार्थ-विषयक) दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करता है। वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करके सुलभता से बोधि को प्राप्त करता है, बोधि की दुर्लभता की निर्जरा करता है। ५९. कायसमाहारणयाए णं भन्ते! जीवे किं जणयइ? कायसमाहारणयाए णं चरित्तपज्जवे विसोहेइ। चरित्तपज्जवे विसोहेत्ता अहक्खायचरितं विसोहेइ। अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारिकेवलिकम्मंसे खवेइ। तओ पच्छा सिझइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ। [५९ प्र.] भन्ते ! कायसमाधारणता से जीव क्या प्राप्त करता है? [उ.] कायसमाधारणता से जीव चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करता है। चारित्र-पर्यवों को विशुद्ध करके यथाख्यातचारित्र को विशुद्ध करता है। यथाख्यातचारित्र को विशुद्ध करके केवली में विद्यमान (वेदनीयादि चार) कर्मों का क्षय करता है। तत्पश्चात् सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और समस्त दुःखों का अन्त करता है। विवेचन–समाधारणा का अर्थ है सम्यक् प्रकार से व्यवस्थापन या नियोजन । मनःसमाधारणा : स्वरूप और परिणाम-आगमोक्त भावों के (श्रुत के) चिन्तन में मन को भलीभांति लगाना या व्यवस्थित करना। इसके चार परिणाम -(१) एकाग्रता. (२) ज्ञान-पर्यवप्राप्ति. (३) सम्यक्त्वशुद्धि और (४) मिथ्यात्वनिर्जरा। मन की एकाग्रता होने से वह साधक ज्ञान के विशेष-विशेष विविध तत्त्व श्रुतबोधरूप पर्यायों (प्रकारों) को प्राप्त करता है, जिससे सम्यग्दर्शन शुद्ध होता है, मिथ्यात्व नष्ट हो जाता है। वचनसमाधारणा : स्वरूप और परिणाम-वचन को स्वाध्याय में भलीभांति संलग्न रखना वचन१. (क) मनसः सम् इति सम्यक, आडिति मर्यादाऽऽगमाभिहितभावाभिव्याप्त्या अवधारणं-व्यवस्थापनं मन:-समाधारणा, तया। -बृहवृत्ति, पत्र ५९२ (ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. २, पत्र २५६
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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