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________________ अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति ४३९ ज्ञान का अर्थ यहाँ सम्यग्ज्ञान-प्रस्तुत में ज्ञान शब्द से सम्यग्ज्ञान ही गृहीत होता है। मिथ्याज्ञान नहीं, क्योंकि सम्यग्ज्ञान ही मोक्ष का कारण है। मिथ्याज्ञान मोक्ष का हेतु नहीं है। विशिष्ट शब्दों के विशेषार्थ-नाणीहिं—ज्ञानियों ने -तीर्थंकरों ने—दव्वाण-जीवादि द्रव्यों का गुणाण-रूप आदि गुणों का, पज्जवाणं-नूतनत्व, पुरातनत्व आदि अनुक्रम से होने वाले पर्यायों (परिवर्तनों) का, नाणं-ज्ञायक है-जानने वाला है। पंचविध ज्ञान : द्रव्य-गुण-पर्यायज्ञाता कैसे?—यहाँ केवलज्ञान की अपेक्षा से पंचविध ज्ञान को सर्वद्रव्य-गुण-पर्यायज्ञाता कहा है, केवलज्ञान के अतिरिक्त अन्य ज्ञान तो नियमित पर्यायों को ही जान सकते द्रव्य, गुण और पर्याय का लक्षण ६. गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा। लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे॥ [६] (जो) गुणों का आश्रय (आधार) है, (वह) द्रव्य है। (जो) केवल द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण कहलाते हैं और जो दोनों अर्थात् द्रव्य और गुणों के आश्रित हों उन्हें पर्याय (पर्यव) कहते हैं। ७. धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गल-जन्तवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं॥ [७] वरदर्शी जिनवरों ने धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव; यह (षड्द्रव्यात्मक) लोक कहा है। ८. धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं। अणन्ताणि य दव्वाणि कालो पुग्गल-जन्तवो॥ [८] धर्म, अधर्म और आकाश, ये तीनों द्रव्य (संख्या में) एक-एक कहे गए हैं। काल, पुद्गल और जीव, ये तीनों द्रव्य अनन्त-अनन्त हैं। ९. गइलक्खणो उधम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो। भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं॥ __ [९] गति (गतिहेतुता) धर्म (धर्मास्तिकाय) का लक्षण है। स्थिति (होने में हेतु होना) अधर्म (अधर्मासित्काय) का लक्षण है। सभी द्रव्यों का भाजन (आधार) आकाश है। वह अवगाह लक्षण वाला है। १०. वत्तणालक्खणो कालो जीवो उवओगलक्खणो। नाणेणं दंसणेणं च सुहेण य दुहेण य॥ [१०] वर्त्तना (परिवर्तन) काल का लक्षण है। उपयोग (चेतना-व्यापार) जीव का लक्षण है, ज्ञान (विशेषबोध), दर्शन (सामान्यबोध) और सुख तथा दु:ख से पाना जाता है। १. तत्त्वार्थसूत्र १/१ भाष्य २. उत्तराध्ययन (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. २, पत्र २२४३. वही, भा. २ पत्र २२४
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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