SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 524
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२५ छब्बीसवाँ अध्ययन : सामाचारी चतुर्थ पौरुषी का कार्यक्रम ३७. चउत्थीए पोरिसीए निक्खिवित्ताण भायणं। सज्झायं तओ कुज्जा सव्वभावविभावणं॥ _[३७] चतुर्थ पौरुषी (प्रहर) में प्रतिलेखना करके सभी पात्रों को (बांध कर) रख दे। तदनन्तर (जीवादि) समस्त भावों का प्रकाशक (अभिव्यक्त करने वाला) स्वाध्याय करे। ३८. पोरिसीए चउब्भाए वन्दित्ताण तओ गुरूं। पडिक्कमित्ता कालस्स सेजंतु पडिलेहए॥ [३८] पौरुषी के चतुर्थ भाग में गुरु को वन्दना करके फिर काल का प्रतिक्रमण (कायोत्सर्ग) कर शय्या का प्रतिलेखन करे। ३९. पासवणुच्चारभूमिं च पडिलेहिज्ज जयं जई। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं॥ [३९] यतना में प्रयत्नशील मुनि फिर प्रस्रवण (भूमि) और उच्चारभूमि का प्रतिलेखन करे, उसके बाद सर्वदुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। विवचने-चतुर्थ प्रहर की चर्या का क्रम प्रस्तुत तीन गाथाओं (३७ से ३९ तक) में चतुर्थ प्रहर की चर्या का क्रम इस प्रकार बताया गया है -(१) प्रतिलेखना, (२) पात्र बांधकर रखना, (३) स्वाध्याय, (४) गुरुवन्दन-काल का कायोत्सर्ग करके शय्याप्रतिलेखन, (५) उच्चारण-प्रस्रवण भूमि-प्रतिलेखन और अन्त में (६) कायोत्सर्ग। दैवसिक प्रतिक्रमण ४०. देसियं च अईचारं चिन्तिज अणुपुव्वसो। नाणे य दंसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य॥ [४०] ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्बन्धित दिवस सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे। ४१. पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरुं। देसियं तु अईयारं आलोएज जहक्कमं॥ [४१] कायोत्सर्ग को पूर्ण (पारित) करके गुरु को वन्दना करे। तदनन्तर क्रमशः दिवस-सम्बन्धी अतिचारों की आलोचना करे। ४२. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरुं। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं॥ ___[४२] (इस प्रकार) प्रतिक्रमण करके निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे। तत्पश्चात् सर्वदुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। १. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. २, पत्र २१६
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy