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________________ ४२२ उत्तराध्ययनसूत्र नीचे और तिरछे लगता है, उसी प्रकार वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिरछे दीवार या अन्य पदार्थ से लगाना। (४) प्रस्फोटना-धूलिधूसरित वस्त्र की तरह प्रतिलेख्यमान वस्त्र का जोर से झड़काना। (५) विक्षिप्ता -प्रतिलेखना किये हुए वस्त्रों को बिना प्रतिलेखना किये हुए वस्त्रों में मिला देना, अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र के पल्ले को इधर-उधर फैंकते रहना या वस्त्र को इतना अधिक ऊँचा उठा लेना कि भलीभांति प्रतिलेखना न हो सके। (६) वेदिका–प्रतिलेखना करते समय दोनों घुटनों के ऊपर, नीचे, बीच में या पार्श्व में या दोनों घुटनों को दोनों हाथों के बीच में या एक जानु को दोनों हाथों के बीच में रखना वेदिकाप्रतिलेखना है। इसी दृष्टि से वेदिका-प्रतिलेखना के ५ प्रकार बताए गए हैं -(१) ऊर्ध्ववेदिका, (२) अधोवेदिका, (३) तिर्यक्वेदिका, (४) उभयवेदिका और (५) एकवेदिका। सात प्रतिलेखना-अविधि-२४वीं गाथा में उक्त प्रतिलेखनाविधि को लेकर यहाँ सात प्रकार की प्रतिलेखना-अविधि बताई है-(१) प्रशिथिल-वस्त्र को ढीला पकड़ना, (२) प्रलम्ब -वस्त्र को इस तरह पकड़ना कि उसके कोने नीचे लटकते रहें, (३) लोल-प्रतिलेख्यमान वस्त्र का भूमि से या हाथ से संघर्षण करना, (४) एकामर्शा -वस्त्र को बीच में से पकड़ कर एक दृष्टि में ही समूचे वस्त्र को देख जाना, (५) अनेक रूप धूनना -वस्त्र को अनेक बार (तीन बार से अधिक) झटकना, अथवा अनेक वस्त्रों को एक साथ एक ही बार में झटकना, (६) प्रमाणप्रमाद - प्रस्फोटन और प्रमार्जन का जो प्रमाण (९-९बार) बताया है, उसमें प्रमाद करना और (७) गणनोपगणना- प्रस्फोटन और प्रमार्जन के शास्त्रोक्त प्रमाण में शंका के कारण हाथ की अंगुलियों की पर्वरेखाओं से गिनती करना।२ प्रतिलेखना : शुद्ध-अशुद्ध-अट्ठाइसवीं गाथा के अनुसार प्रशस्त (शुद्ध) या अप्रशस्त (अशुद्ध) प्रतिलेखना के ८ विकल्प होते हैं -(१) जो प्रतिलेखना (प्रस्फोटन-प्रमार्जन के) प्रमाण से अन्यून, अनतिरिक्त (न कम, न अधिक) और अविपरीत हो, (२) अन्यून, अनतिरिक्त हो, पर विपरीत हो, (३) जो अन्यून हो, किन्तु अतिरिक्त हो, अविपरीत हो, (४) जो न्यून हो, अतिरिक्त हो और विपरीत हो, (५) जो न्यून हो, अनतिरिक्त हो, अविपरीत हो, (६) जो न्यून हो, अनतिरिक्त हो, किन्तु विपरीत हो, (७) जो न्यून हो, अतिरिक्त हो, किन्तु अविपरीत हो, (८) जो न्यून हो, अतिरिक्त हो और विपरीत भी हो। इसमें प्रथम विकल्प शुद्ध (प्रशस्त) है और शेष ७ विकल्प अशुद्ध (अप्रशस्त) हैं। प्रतिलेखना में प्रमत्त और अप्रमत्त : परिणाम -गा. २९-३० में प्रतिलेखना-प्रमत्त के लक्षण और उसे षट्काय-विराधक तथा ३१वीं गाथा में प्रतिलेखना-अप्रमत्त के लक्षण एवं उसे षट्काय का आराधक कहा है। तृतीय पौरुषी का कार्यक्रम : भिक्षाचर्या ३२. तइयाए पोरिसीए भत्तं पाणं गवेसए। ___ छण्हं अन्नयरागम्मि कारणमि समुट्ठिए।। १. (क) स्थानांग, स्थान ६/५०३ (ख) उत्तरा. बृहद्वृत्ति, पत्र ५४२ (ग) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर) भाग २, पत्र २१२ । २. (क) उत्तरा. बृहद्वृत्ति, पत्र ५४२ (ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर) भा. २, पत्र २१३ ३. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर) भा. २, पत्र २१३ ४. उत्तरा. (गु. भाषान्तर,) भा. २, पत्र २१३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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