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________________ ४०४ उत्तराध्ययनसूत्र २३. तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे। जो न हिंसइ तिविहेणं तं वयं बूम माहणं॥ [२३] जो वस और स्थावर जीवों को सम्यक् प्रकार से जान कर उनकी मन, वचन और काय से हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। २४. कोहा वाजइ वा हासा लोहा वा जइ वा भया। मुसं न वयई जो उ तं वयं बूम माहणं॥ [२४] जो क्रोध से अथवा हास्य से, लोभ से अथवा भय से असत्य भाषण नहीं करता, उसे, हम ब्राह्मण कहते हैं। २५. चित्तमन्तमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं। न गेण्हइ अदत्तं जे तं वयं बूम माहणं॥ [२५] जो सचित्त या अचित्त, थोड़ी या बहुत अदत्त (वस्तु को) नहीं ग्रहण करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। २६. दिव्व-माणुस-तेरिच्छं जो न सेवइ मेहुणं। मणसा काय-वक्केणं तं वयं बूम माहणं॥ [२६] जो देव, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी मैथुन का मन से, वचन से और काया से सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। २७. जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पड़ वारिणा। एवं अलित्तो कामेहिं तं वयं बूम माहणं॥ [२७] जिस प्रकार जल में उत्पन्न होकर भी पद्म जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो (कामभोगों के वातावरण में उत्पन्न हुआ मनुष्य) कामभोगों से अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। २८. अलोलुयं मुहाजीवी अणगारं अकिंचणं। असंसत्तं गिहत्थेसु तं वयं बूम माहणं॥ [२८] जो (रसादि में) लुब्ध नहीं है, जो मुधाजीवी (निर्दोष भिक्षा से जीवन निर्वाह करता) है, गृहत्यागी (अनगार) है, जो अकिंचन है, जो गृहस्थों से असंसक्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। २९. जहित्ता पुव्वसंजोगं नाइसंगे य बन्धवे। जो न सजइ एएहिं तं वयं बूम माहणं॥ [२९] जो पूर्वसंयोगों को, ज्ञातिजनों की आसक्ति को एवं बान्धवों को त्याग कर फिर आसक्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। विवेचन यमयायाजी ब्राह्मण के लक्षण–१६ वीं गाथा में यज्ञों का मुख यज्ञार्थी कहा गया है, उस आत्मयज्ञार्थी को ही जयघोष मुनि ने ब्राह्मण कहा है। उसके लक्षण मुख्यतया ये बताए हैं
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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