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________________ तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय ३८१ [७६] (गणधर गौतम)—समग्र लोक में प्रकाश करने वाला निर्मल सूर्य उदित हो चुका है, वही समस्त लोक में प्राणियों के लिए प्रकाश प्रदान करेगा। ७७. भाणू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥ [७७] (केशी कुमारश्रमण)—केशी ने गौतम से पूछ।—'आप सूर्य किसे कहते हैं?' केशी के इस प्रकार पूछने पर गौतम ने यह कहा ७८. उग्गओ खीणसंसारो सव्वन्नू जिणभक्खरो। सो करिस्सइ उजोयं सव्वलोयंमि पाणिणं॥ [७८] (गणधर गौतम)—जिसका संसार क्षीण हो चुका है, जो सर्वज्ञ है, ऐसा जिन-भास्कर उदित हो चुका है। वही सारे लोक में प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा। विवेचन–अन्धयारे तमे घोरे—यहाँ अन्धकार का संकेत अज्ञानरूप अन्धकार से है तथा प्रकाश का अर्थ-ज्ञान । संसार के अधिकांश प्राणी अज्ञानरूप गाढ़ अन्धकार से घिरे हुए हैं, उन्हें सद्ज्ञान का जाज्वलयमान प्रकाश देने वाले सूर्य जिनेन्द्र हैं। ___ यद्यपि 'अन्धकार' और 'तम' शब्द एकार्थक हैं, तथापि यहाँ 'तम' अन्धकार का विशेषण होने से 'तम' का अर्थ यहाँ गाढ़ होता है। विमलो भाणू-निर्मल भानु का तात्पर्य यहाँ बाह्यरूप में बादलों से रहित सूर्य है, किन्तु आन्तरिक रूप में कर्मरूप मेघ से अनाच्छादित विशुद्ध केवलज्ञानयुक्त सर्वज्ञ परम आत्मा। आत्मा जब पूर्ण विशुद्ध होता है, तब सर्वज्ञ, केवली, राग द्वेष-मोह-विजेता, अष्टविध कर्मों से सर्वथा रहित हो जाता है। ऐसे परम विशुद्ध आत्मा जिनेश्वर ही हैं, वही सम्पूर्ण लोक में प्रकाश-सम्यग्ज्ञान प्रदान करते हैं ।२ बारहवाँ प्रश्नोत्तर : क्षेम, शिव और अनाबाध स्थान के विषय में ७९. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। ___ अन्नो वि संसओ मझं तं मे कहसु गोयमा!॥ [७९] (केशी कुमार श्रमण)—गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा निर्मल है। आपने मेरा संशय तो दूर कर दिया। अब मेरा एक संशय रह जाता है, गौतम! उसके विषय में भी मुझे कहिए। ८०. सारीर-माणसे दुक्खे बज्झमाणाण पाणिणं। खेमं सिवमणाबाहं ठाणं किं मन्नसी मुणी?॥ [८०] मुनिवर! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए क्षेम, शिव और अनाबाधबाधारहित स्थान कौन-सा मानते हो? १. उत्तरा. वृत्ति, अभि. रा, कोष भा. ३ पृ. ९६५ २. वही, पृ.९६५
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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