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उत्तराध्ययनसूत्र सातवाँ प्रश्नोत्तर : मनोनिग्रह के सम्बन्ध में
५४. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो।
____ अन्नो वि संसओ मझं तं मे कहसु गोयमा!॥ [५४] (केशी श्रमण)-गौतम! आपकी प्रज्ञा प्रशस्त है। आपने मेरा यह संशय मिटा दिया, किन्तु मेरा एक और सन्देह है, उसके सम्बन्ध में भी मुझे कहें।
५५. अयं साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई।
जंसि गोयम! आरूढो कहं तेण न हीरसि?॥ [५५] यह साहसिक, भयंकर, दुष्ट घोड़ा इधर-उधर चारों ओर दौड़ रहा है। गौतम! आप उस पर आरूढ हैं, (फिर भी) वह आपको उन्मार्ग पर क्यों नहीं ले जाता?
५६. पधावन्तं निगिण्हामि सुयरस्सीसमाहियं।
न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवजई॥ [५६] (गणधर गौतम)—दौड़ते हुए उस घोड़े का मैं श्रुत-रश्मि (शास्त्रज्ञानरूपी लगाम) से निग्रह करता हूँ, जिससे वह मुझे उन्मार्ग पर नहीं ले जाता, अपितु सन्मार्ग पर ही चलता है।
५७. अस्से य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी।
___ केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी।। [५७] (केशी कुमारश्रमण)-~यह अश्व क्या है -अश्व किसे कहा गया है?—इस प्रकार केशी ने गौतम से पूछा। केशी के ऐसा पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा
५८. मणो साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई।
तं सम्मं निगिण्हामि धम्मसिक्खाए कन्थगं।। [५८] (गणधर गौतम ) मन ही वह साहसी, भयंकर और दुष्ट अश्व है, जो चारों ओर दौड़ता है। उसे मैं सम्यक् प्रकार से वश में करता हूँ। धर्मशिक्षा से वह कन्थक (-उत्तम जाति के अश्व) के समान हो गया है।
विवेचन हीरसि-उन्मार्ग में कैसे नहीं ले जाता? सुयरस्सीसमाहियं-श्रुत अर्थात्-सिद्धान्त रूपी रश्मि-लगाम से समाहित—नियंत्रित। साहसिओ- (१) सहसा बिना विचारे काम करने वाला, (२) साहस (हिम्मत) करने वाला।
धम्मसिक्खाए निगिण्हामि-धर्म के अभ्यास (शिक्षा) से मैं मनरूपी दुष्ट अश्व को वश में करता हूँ।' आठवाँ प्रश्नोत्तर : कुपथ-सत्पथ के विषय में
५९. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो।
___अन्नो वि संसओ मझं तं मे कहसु गोयमा!॥ १. (क) बृहद्वृत्ति, अभिधान रा. कोष भा. ३, पृ. ९६४
(ख) सहसा असमीक्ष्य प्रवर्तते इति साहसिकः। -बृहद्वृत्ति,पत्र ५०७