________________
३७४
उत्तराध्ययनसूत्र
विवेचन-सव्वसो छित्ता–संसार को अपने चंगुल में फंसाने वाले उन सब बन्धनों-रागद्वेषादि पाशों को पूरी तरह काट कर। ... उवायओ निहंतूण-उपाय से अर्थात्-सत्यभावना के या नि:संगता आदि के अभ्यास रूप उपाय से निर्मल—पुनः उनका बन्ध न हो, इस रूप से उन्हें विनष्ट करके। पंचम प्रश्नोत्तर-तृष्णारूपी लता को उखाड़ने के सम्बन्ध में
४४. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो।
अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा!।। [४४] (केशी कुमारश्रमण)–गौतम! आपकी प्रज्ञा सुन्दर है। आपने मेरा यह संशय मिटा दिया। परन्तु गौतम। मेरा एक और सन्देह है, उसके विषय में भी मुझे कहिए।
४५. अन्तोहियय-संभूया लया चिट्ठइ गोयमा!।
___ फलेइ विसभक्खीणि सा उ उद्धरिया कह?।। [४५] हे गौतम! हृदय के अन्दर उत्पन्न एक लता रही हुई है, जो भक्षण करने पर विषतुल्य फल देती है। आपने उस (विषबेल) को कैसे उखाड़ा?
४६. तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरित्ता समूलियं।
विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणं॥ [४६] (गणधर गौतम)—उस लता को सर्वथा काट कर एवं जड़ से (समूल) उखाड़ कर मैं (सर्वज्ञोक्त) नीति के अनुसार विचरण करता हूँ। अतः मैं उसके विषफल खाने से मुक्त हूँ।
४७. लया य इइ का वुत्ता? केसी गोयममब्बवी।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमा इणमब्बवी।। [४७] (केशी कुमारश्रमण) - केशी ने गौतम से पूछा 'वह लता आप किसे कहते हैं?' केशी के इस प्रकार पूछने पर गौतम ने यह कहा- .
४८. भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीमफलोदया।
तमुद्धरित्तु जहानायं विहरामि महामुणी!।। [४८] (गणधर गौतम)-भवतृष्णा (सांसारिक तृष्णा-लालसा) को ही भंयकर लता कहा गया है। उसमें भयंकर विपाक वाले फल लगते हैं। हे महामुने! मैं उसे मूल से उखाड़ कर (शास्त्रोक्त) नीति के अनुसार विचरण करता हूँ।
विवेचन–अंतोहिययसंभूया-वास्तव में तृष्णारूपी लता मनुष्य के हृदय के भीतर पैदा होती है १. (क) बृहद्वृत्ति, अभि. रा. कोष भा. ३, पृ. ९६३
(ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. २, पत्र १८१ (ग) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा.३, पृ. ९३२