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________________ तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय ३७३ पांच इन्द्रियों के २३ विषय और २४० विकार होते हैं। इस प्रकार इन्द्रियरूप शत्रुओं के ५ + २३ + २४० = २६८ भेद हुए तथा ५२०० कषायों के भेदों के साथ २६८ इन्द्रियों के एवं एक सर्वप्रधान शत्रु मन के भेद को मिलाने पर कुल शत्रुओं की संख्या ५४६९ हुई तथा हास्यादि ६ के प्रत्येक ४-४ भेद होने से कुल २४ भेद हुए। इनमें स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेद मिलाने से नोकषायों के कुल २७ भेद होते हैं। पिछले ५४६९ में २७ को मिलाने से ५४९६ भेद शत्रुओं के हुए तथा शत्रु शब्द से मिथ्यात्व, अव्रत आदि तथा ज्ञानावरणीयादि कर्म एवं रागद्वेषादि भी लिये जा सकते हैं। इसीलिए मूलसूत्र में अनेकसहस्र शत्रु' बताए गए हैं। चतुर्थ प्रश्नोत्तर : पाशबन्धनों को तोड़ने के सम्बन्ध में ३६. साह गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्ने वि संसओ मझं तं मे कहसु गोयमा!॥ [३९] (केशी कुमारश्रमण)—हे गौतम! आपकी प्रज्ञा समीचीन है, (क्योंकि) आपने मेरा यह संशय मिटा दिया; (किन्तु) मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम! उस विषय में मुझे कहें। ४०. दीसन्ति बहवे लोए पासबद्धा सरीरिणो। ___ मक्कपासो लहुब्भूओ कहं तं विहरसी मुणी!।। [४०] इस लोक में बहुत-से शरीरधारी—जीव पाशों (बन्धनों) से बद्ध दिखाई देते हैं । मुने! आप बन्धन (पाश) से मुक्त और लघुभूत (वायु की तरह अप्रतिबद्ध एवं हल्के) होकर कैसे विचरण करते हैं?' ४१. ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायओ। मुक्कपासो लहुब्भूओ विहरामि अहं मुणी!। [४१] (गणधर गौतम)—मुने! मैं उन पाशों (बन्धनों) को सब प्रकार से काट कर तथा उपाय से विनष्ट कर बन्धन-मुक्त एवं लघुभूत (हल्का) होकर विचरण करता हूँ। ४२. पासा य इइ के वुत्ता? केसी गोयममब्बवी। ___ केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी।। [४२] (केशी कुमारश्रमण)-गौतम ! पाश (बन्धन) किन्हें कहा गया है?— (इस प्रकार) केशी ने गौतम से पूछा । केशी के ऐसा पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा – ४३. रागद्दोसादओ तिव्वा नेहपासा भयंकरा। ते छिन्दित्तु जहानायं विहरामि जहक्कम।। ___ [४३] (गणधर गौतम)-तीव्र राग-द्वेष आदि और (पुत्र-कलत्रादिसम्बन्धी) स्नेह भयंकर पाश (बन्धन) हैं। उन्हें (शास्त्रोक्त) धर्मनीति के अनुसार काट कर, (साध्वाचार के) क्रमानुसार मैं विचरण करता हूँ। १. उत्तराध्यन प्रियदर्शिनीटीका, भा० ३, पृ. ९२१ से ९२८ तक
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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