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उत्तराध्ययनसूत्र ___ दोनों की तुलना में इस गाथा का आशय-भगवान् महावीर ने अचेल या अल्प चेल (केवल श्वेत प्रमाणोपेत जीर्णप्रायः अल्पमूल्य वस्त्र) वाले धर्म का प्रतिपादन किया है, जब कि भगवान् पार्श्वनाथ ने सचेल (प्रमाण और वर्ण की विशेषता से विशिष्ट तथा बहुमूल्य वस्त्र वाले) धर्म का प्रतिपादन किया है। दोनों का परस्पर मिलन : क्यों और कैसे?
१४. अह ते तत्थ सीसाणं विनाय पवितक्कियं।
समागमे कयमई उभओ केसि-गोयमा॥ [१४] (अपने-अपने शिष्यों को पूर्वोक्त शंका उत्पन्न होने पर) केशी और गौतम दोनों ने शिष्यों के वितर्क-(शंका से) युक्त (विचारविमर्श) जान कर परस्पर वहीं (श्रावस्ती में ही) मिलने का विचार किया।
१५. गोयमे पडिरूवन्नू सीससंघ – समाउले।
जेठं कुलमवेक्खन्तो तिन्दुयं वणमागओ॥ [१५] यथोचित् विनयमर्यादा के ज्ञाता (प्रतिरूपज्ञ) गौतम, केशी श्रमण के कुल को ज्येष्ठ जान कर अपने शिष्यसंघ के साथ तिन्दुक वन (उद्यान) में आए।
१६. केसी कुमार-समणे गोयमं दिस्समागयं।
पडिरूवं पडिवत्तिं सम्मं संपडिवज्जई।। __ [१६] गौतम को आते हुए देख कर केशीकुमारश्रमण ने सम्यक् प्रकार से (प्रतिरूप प्रतिपत्ति) उनके अनुरूप (योग्य) आदरसत्कार किया।
१७. पलालं फासुयं तत्थ पंचमं कुसतणाणि य।
___ गोयमस्स निसेजाए खिप्पं संपणामए।। [१७] गौतम को बैठने के लिए उन्होंने तत्काल प्रासुक पयाल (चार प्रकार के अनाजों के पराल– घास) तथा पांचवाँ कुश-तृण समर्पित किया (प्रदान किया)।
१८. केसी कुमार-समणे गोयमे य महायसे।
उभओ निसण्णा सोहन्ति चन्द-सूर-समप्पभा।। [१८] कुमारश्रमण केशी और महायशस्वी गौतम दोनों (वहाँ) बैठे हुए चन्द्र और सूर्य के समान (प्रभासम्पन्न) सुशोभित हो रहे थे।
१९. समागया बहू तत्थ पासण्डा कोउगा मिगा।
___गिहत्थाणं अणेगाओ साहस्सीओ समागया।। १. 'अचेलकश्च' उक्तन्यायविद्यमानचेलक: कुत्सितचेलको वा यो धर्मो वर्धमानेन देशित इत्यपेक्ष्यते, तथा 'जो इमो' त्ति
पूर्ववद् यश्चायं सान्तराणि - वर्धमानस्वामिसत्क-यतिवस्त्रापेक्षया कस्यचित् कदाचिन्मान-वर्णविशेषतो विशेषितानि उत्तराणि च महाधनमूल्यतया प्रधानानि प्रक्रमाद् वस्त्राणि यस्मिन्नसौ सान्तरोत्तरो धर्मः दाइँन देशित इतीहापेक्ष्यते।
- बृहवृत्ति, पत्र ५००