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________________ ३५८ उत्तराध्ययनसूत्र रथनेमि पुनः संयम में दृढ़ ४९. मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइन्दिओ। ___सामण्णं निच्चलं फासे जावजीवं दढव्वओ॥ [४९] वह (रथनेमि) मन-वचन-काया से गुप्त, जितेन्द्रिय एवं महाव्रतों में दृढ़ हो गया तथा जीवनपर्यन्त निश्चलभाव से श्रामण्य का पालन करता रहा। उपसंहार ५०. उग्गं तवं चरित्ताणं जाया दोण्णि वि केवली। __ सव्वं कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं॥ [५०] उग्र तप का आचरण करके दोनों ही केवलज्ञानी हो गए तथा समस्त कर्मों का क्षय करके उन्होंने अनुत्तर सिद्धि प्राप्त की। ५१. एवं करेन्ति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा। विणियट्टन्ति भोगेसु जहा सो पुरिसोत्तमो॥ __-त्ति बेमि। [५१] सम्बुद्ध, पण्डित और प्रविचक्षण पुरुष ऐसा ही करते हैं। पुरुषोत्तम रथनेमि की तरह वे भोगों से निवृत्त हो जाते हैं। - ऐसा मैं कहता हूँ। दोण्णि वि...... सिद्धिं पत्ता-रथनेमि और राजीमती दोनों केवली हुए और समस्त भवोपनाही कर्मों का क्षय करके सर्वोत्कृष्ट सिद्धि प्राप्त की। रथनेमि का संक्षिप्त जीवन-वृत्तान्त–सोरियपुर के राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के चार पुत्र थे-अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और दृढ़नेमि । अरिष्टनेमि २२वें तीर्थंकर अर्हन्त हुए, रथनेमि प्रत्येकबुद्ध हुए। भगवान् रथनेमि ४०० वर्ष तक गृहस्थपर्याय में, १ वर्ष छद्मावस्था में और ५०० वर्ष तक केवलीपर्याय में रहे । इनकी कुल आयु ९०१ वर्ष की थी। इतनी ही आयु तथा कालमान राजीमती का था। ॥ रथनेमीय : बाईसवाँ अध्ययन समाप्त ।। ברם १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४९६ २. नियुक्ति गाथा, ४४३ से ४४७; बृहवृत्ति, पत्र ४९६
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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