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________________ ३५६ उत्तराध्ययनसूत्र किराने का रक्षक) उस द्रव्य ( गायों या किराने) का स्वामी नहीं होता; इसी प्रकार (संयमरहित, केवल वेषधारी होने पर) तुम भी श्रामण्य के स्वामी नहीं होगे।' ४७. कोहं माणं निगिण्हित्ता मायं लोभं च सव्वसो । इन्दियाई वसे काउं अप्पाणं उवसंहरे ॥ [ ४७ ] 'तुम क्रोध, मान, माया और लोभ का पूर्ण रूप से निग्रह करके, इन्द्रियों को वश में करके अपने आपको उपसंहरण (अनाचार से विरत) करो।' ४८. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥ [४८] उस संयती (साध्वी राजीमती) के सुभाषित वचनों को सुन कर रथनेमि ( श्रमण - ) धर्म में वैसे ही सुस्थिर हो गया, जैसे अंकुश से हाथी वश में हो जाता है। विवेचन वासेणुल्ला - वृष्टि से भीग गई अर्थात् उसके सारे वस्त्र गीले हो गए थे। चीवराई—संघाटी ( चादर) आदि वस्त्र । भग्गचित्तो-संयम के प्रति जिसका परिणाम विचलित हो गया हो । पच्छा दिट्ठो० - शास्त्रकार का आशय यह है कि गुफा में अन्धेरा रहता है और अन्धकार प्रदेश में 0 बाहर से प्रवेश करने वाले को सर्वप्रथम सहसा कुछ भी दिखाई नहीं देता । यदि दिखाई देता तो वर्षा की हड़बड़ी में शेष साध्वियों के अन्यान्य आश्रयस्थानों में चले जाने के कारण राजीमती अकेली वहाँ प्रवेश नहीं करती। इससे स्पष्ट है कि गुफा में रथनेमि है, यह राजीमती को पहले नहीं दिखाई दिया। बाद में उसने उसे वहाँ देखा । भयभीत और कम्पित होने का कारण - राजीमती वहाँ गुफा में अकेली थी और वस्त्र गीले होने 'सुखा दिये थे, इसलिए निर्वस्त्रावस्था में थी, फिर जब उसने वहाँ रथनेमि को देखा, तब वह भयभीत हो गई कि कदाचित् यह बलात् शील भंग न कर बैठे, इसीलिए बलात् आलिंगनादि न करने देने हेतु झटपट अपने अंगों को सिकोड़कर वक्षस्थल पर अपनी दोनों भुजाओं से परस्पर गुम्फन करके यानी मर्कटबन्ध, करके वह बैठ गई थी। फिर भी शीलभंग के भय से वह कांप रही थी। २ (मं भयाहि (१) मां भजस्व - तू मुझे स्वीकार कर, (२) ममा भैषी - तू बिलकुल डर मत । ३ सुतनु-सुतनु का अर्थ होता है— सुन्दर शरीर वाली । किन्तु विष्णुपुराण में उग्रसेन की एक पुत्री का नाम 'सुतनु' बताया गया है। संभव है, राजीमती का दूसरा नाम 'सुतनु' हो । ९. बृहद्वृत्ति, पत्र ४९३ २. 'भीता च मा कदाचिदसौ मम शीलभंगं विधास्यतीति कृत्वा सा बाहाहिं— बाहुभ्यां कृत्वा संगोपं, परस्परबाहुगुम्फन स्तनोपरिमर्कटबन्धमिति यावत् । तदाश्लेषादिपरिहारार्थम्, वेपमाना ।' — वही, पत्र ४९४ ३. वही, पत्र ४९४ ४. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४९४ : सुतनु ! शब्द से राजीमती को सम्बोधित किया गया है। (ख) कंसा कंसवती- सुतनु - राष्ट्रपालिकाह्वाश्चोग्रसेनस्य तनुजाः कन्याः । - विष्णुपुराण ४/१४/२१
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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