________________
३५२
उत्तराध्ययनसूत्र [२८] (अरिष्टनेमि) जिनेश्वर की प्रव्रज्या को सुन कर राजकन्या (राजीमती) हास्यरहित और आनन्दविहीन हो गई। वह शोक से मूर्च्छित हो गई।
२९. राईमई विचिन्तेइ धिरत्थु मम जीवियं।
जाऽहं तेण परिच्चत्ता सेयं पव्वइउं मम।। [२९] राजीमती ने विचार किया—'धिक्कार है मेरे जीवन को कि मैं उनके (अरिष्टनेमि के) द्वारा परित्यक्त की गई। (अतः) मेरा (अब) प्रव्रजित होना ही श्रेयस्कर है।'
३०. अह सा भमरसन्निभे कुच्च फणग पसाहिए।
सयमेव लुचई केसे धिइमन्ता ववस्सिया॥ [३०] इसके पश्चात् धैर्यवती एवं कृतनिश्चया उस राजीमती ने कूर्च और कंघी से प्रसाधित भ्रमर जैसे काले केशों का अपने हाथों से लुञ्चन किया।
३१. वासुदेवो यणं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं।
संसारसागरं घोरं तर कन्ने! लहुं लहुँ॥ [३१] वासुदेव ने केशों का लुञ्चन की हुई एवं जितेन्द्रिय राजीमती से कहा—'कन्ये! तू इस घोर संसारसागर को अतिशीघ्र पार कर।'
३२. सा पव्वइया सन्ती पव्वावेसी तहिं बहुं।
सयणं परियणं चेव सीलवन्ता बहुस्सुया॥ [३२] प्रव्रजित होने के पश्चात् उस शीलवती राजीमती ने बहुश्रुत हो कर उस द्वारका नगरी में (अपने साथ) बहुत-सी स्वजनों और परिजनों की स्त्रियों को प्रव्रजित किया।
विवेचन तीर्थंकर अरिष्टनेमि के विरक्त एवं प्रवजित होने पर राजीमती की दशा—पहले तो राजीमती अरिष्टनेमि कुमार को दूल्हे के रूप में आते देख अतीव प्रसन्न हुई और सखियों के समक्ष हर्षावेश में आकर उनके गुणगान करने लगी। किन्तु ज्यों ही उसकी दांयी आँख फड़की, वह अत्यन्त उदास और अधीर होकर बोली—मैं इस अपशकुन से जानती हूँ कि मेरे नाथ यहाँ तक पधारे हैं, फिर भी वे वापस लौट जाएँगे, मेरा पाणिग्रहण नहीं करेंगे। __ज्यों ही नेमि कुमार वापस लौटे, राजीमती अत्यन्त शोकातुर एवं मूछित होकर गिर पड़ी। सचेतन होते ही वह दुःखभरे उद्गार प्रकट करती हुई विलाप करने और मन ही मन नेमि कुमार को उपालम्भ देने लगी। उसकी सखियों ने बहुत समझाया और अन्य सुन्दर राजकुमारों का वरण करने का आग्रह किया, परन्तु राजीमती ने कहा-मैं स्वप्न में भी दूसरे व्यक्ति का वरण नहीं कर सकती। __कुछ ही देर में वह स्वस्थ होकर कहने लगी—'सखियो! वापस लौट कर वे मुझे संकेत कर गए हैं कि पतिव्रता स्त्री का कर्तव्य पति के मार्ग का अनुसरण करना है। आज मुझे एक स्वप्न आया था कि कोई पुरुष ऐरावत हाथी पर चढ़कर मेरे घर आया और तत्काल मेरुपर्वत पर चढ़ गया। जाते समय उसने लोगों को चार फल दिये, मुझे भी फल दिया।' सखियों ने स्वप्न को शुभफलदायक बताया। तत्पश्चात् राजीमती