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________________ ३५० उत्तराध्ययनसूत्र में चलते समय वे रथारूढ़ हो गए हों, ऐसा अनुमान होता है, इस दृष्टि से 'सारथि' शब्द सार्थक है। अरिष्टनेमि के द्वारा प्रव्रज्याग्रहण २१. मणपरिणामे य कए देवा य जहोइयं समोइण्णा। सव्विड्ढीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउंजे।। [२१] (अरिष्टनेमि के द्वारा) मन में (दीक्षा-ग्रहण के) परिणाम (भाव) होते ही उनके यथोचित अभिनिष्क्रमण के लिए देव अपनी समस्त ऋद्धि और परिषद् के साथ आकर उपस्थित हो गए। २२. देव-मणुस्सपरिवुडो सीयारयणं तिओ समारूढो। निक्खमिय बारगाओ रेवययंमि ट्ठिओ भगवं।। [२२] तदनन्तर देवों और मानवों से परिवृत भगवान् (अरिष्टनेमि) शिविकारत्न (– श्रेष्ठ पालखी) पर आरूढ हुए। द्वारका से निष्क्रमण (चल) कर वे रैवतक (गिरनार) पर्वत पर स्थित हुए। २३. उज्जाणं संपत्तो ओइण्णो उत्तिमाओ सीयाओ। साहस्सीए परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहिं।। _[२३] उद्यान (सहस्राम्रवन) में पहुँच कर वे उत्तम शिविका से उतरे। (फिर) एक हजार व्यक्तियों के साथ भगवान् ने चित्रा नक्षत्र में अभिनिष्क्रमण किया। २४. अह से सुगन्धिगन्धिए तुरियं मउयकुंचिए। ___ सयमेव लुचई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ।। [२४] तदनन्तर समाहित (समाधिसम्पन्न) अरिष्टनेमि ने तुरन्त सुगन्ध से सुवासित अपने कोमल और धुंघराले बालों का स्वयं अपने हाथों से पंचमुष्टि लोच किया। २५. वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं। इच्छियमणोरहे तुरियं पावेसुतं दमीसरा!।। [२५] वासुदेव कृष्ण ने लुंचितकेश एवं जितेन्द्रिय भगवान् से कहा – 'हे दमीश्वर! आप अपने अभीष्ट मनोरथ को शीघ्र प्राप्त करो।', २६. नाणेणं दंसणेणं च चरित्तेण तहेव य। खन्तीए मुत्तीए वड्ढमाणो भवाहि य॥ [२६] 'आप ज्ञान, दर्शन, चारित्र, शान्ति (क्षमा) और मुक्ति (निर्लोभता) के द्वारा आगे बढ़ो।' २७. एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जणा। अरिट्ठणेमिं वन्दित्ता अइगया बारगापुरिं॥ [२७] इस प्रकार बलराम, केशव, दशाह यादव और अन्य बहुत-से लोग अरिष्टनेमि को वन्दना कर द्वारकापुरी को लौट आए। १. 'सारथि—प्रवर्त्तयितारं प्रक्रमाद् गन्धहस्तिनो हस्तिपकमिति यावत् । यद्वाऽत एव तदा रथारोहणमनुमीयते इति रथप्रवर्त्तयितारम्।'- बृहद्वृत्ति, पत्र ४९२
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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