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________________ वीसवाँ अध्ययन : महानिर्ग्रन्थीय ३२५ अन्य प्रकार की अनाथता ३८. इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा ! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि। नियण्ठधम्मं लहियाण वी जहा सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा॥ [३८] हे नृप! यह एक और भी अनाथता है; शान्त और एकाग्रचित्त हो कर उसे सुनो। जैसेकई अत्यन्त कायर नर होते हैं, जो निर्ग्रन्थधर्म को पा कर भी दुःखानुभव करते हैं । (उसका आचरण करने में शिथिल हो जाते हैं।) ३९. जो पव्वइत्ताण महव्वयाई सम्मं नो फासयई पमाया। अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे न मूलओ छिन्दइ बन्धणं से॥ [३६] जो प्रव्रज्या ग्रहण करके प्रमादवश महाव्रतों का सम्यक् पालन नहीं करता; अपनी आत्मा का निग्रह नहीं करता; रसों में आसक्त रहता है; वह मूल से (रागद्वेषरूप) बन्धन का उच्छेद नहीं कर पाता। ४०. आउत्तया जस्स न अस्थि काइ इरियाए भासाए तहेसणाए। आयाण-निक्खेव-दुगुंछणाए न वीरजायं अणुजाइ मग्गं॥ [४०] जिसकी ईर्या, भाषा, एषणा और आदान-निक्षेप में तथा उच्चार-प्रस्रवणादि-परिष्ठापन (जुगुप्सना) में कोई भी आयुक्तता (–सावधानी) नहीं है, यह वीरयात–वीर पुरुषों द्वारा सेवित मार्ग का अनुगमन नहीं कर सकता। ४१. चिरं पिसे मुण्डरुई भवित्ता अथिरव्वए तव-नियमेहि भटे। चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता न पारइ होइ हु संपराए॥ [४१] जो अहिंसादि व्रतों में अस्थिर है, तप और नियमों से भ्रष्ट है, वह चिरकाल तक मुण्डरुचि रह कर और चिरकाल तक आत्मा को (लोच आदि से) क्लेश दे कर भी संसार का पारगामी नहीं हो पाता। ४२. पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे अयन्तिए कूडकहावणे वा। राढामणी वेरुलियप्पगासे अमहग्घए होइ य जाणएसु॥ [४२] जैसे पोली (खाली) मुट्ठी निस्सार होती है, उसी तरह वह (द्रव्यसाधु रत्नत्रयशून्य होने से) साररहित होता है। अथवा वह खोटे सिक्के (कार्षापण) की तरह अयन्त्रित (अनादरणीय अथवा अप्रमाणित) होता है; क्योंकि वैडूर्यमणि की तरह चमकने वाली तुच्छ राढामणि-काचमणि के समान वह जानकार परीक्षकों की दृष्टि में मूल्यवान् नहीं होता। ४३. कुसीललिंग इह धारइत्ता इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता। __ असंजए संजयलप्पमाणे विणिघायमागच्छइ से चिरंपि॥ [४३] जो (साध्वाचारहीन) व्यक्ति कुशीलों (पार्श्वस्थादि आचारहीनों) का वेष (लिंग) तथा १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४६७ का तात्पर्य
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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