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वीसवाँ अध्ययन : महानिर्ग्रन्थीय
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[२४] मेरे पिता ने मेरे निमित्त (उन चिकित्सकों को उपहारस्वरूप) (घर की) सर्वसार (समस्त धन आदि सारभूत) वस्तुएँ दीं, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त न कर सके, यह मेरी अनाथता है । माया य मे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया । नय दुक्खा विमोइए एसा मज्झ अणाहया ॥
२५.
[२५] हे महाराज! मुक्त न कर सकी, यह मेरी
२६.
है।
मेरी माता पुत्र शोक के दुःख से पीड़ित रहती थी, किन्तु वह भी मुझे दुःख से अनाथता है।
भायरो मे
महाराय ! सगा जेट्ठ-कणिट्ठगा ।
न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाहया ॥
[२६] मेरे बड़े और छोटे सभी सहोदर भाई भी दुःख से मुक्त नहीं कर सके, यह मेरी अनाथता
२७. भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्ठ- कणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाहया ॥
[२७] महाराज ! मेरी छोटी और बड़ी सगी भगिनियां ( बहनें) भी मुझे दुःख से सकीं यह मेरी अनाथता है ।
२८. भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया । पुणेहिं नहिं उरं मे परिसिंचाई ॥
[२८] महाराज! मेरी पत्नी, जो मुझ में अनुरक्ता और अनुव्रता (पतिव्रता ) थी, अश्रुपूर्ण नेत्रों से मेरे उर:स्थल (छाती) को सींचती रहती थी ।
२९. अन्नं पाणं च पहाणं च गन्ध-मल्ल-विलेवणं ।
म नायमणायं वा सा बाला नोवभुंजई ॥
मुक्त नहीं कर
[२९] वह बाला (नवयौवना पत्नी) मेरे जानते या अनजानते (प्रत्यक्ष या परोक्ष में ) कदापि अन्न, पान, स्नान, गन्ध, माल्य और विलेपन का उपभोग नहीं करती थी ।
३०.
खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टई ।
न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया ॥
[३०] वह एक क्षणभर भी मुझ से दूर नहीं हटती थी; फिर भी वह मुझे दुःख से विमुक्त न कर सकी, महाराज! यह मेरी अनाथता है ।
विवेचन -अनाथता के कतिपय कारण : मुनि के मुख से – (१) विविध चिकित्सकों ने विविध प्रकार से चिकित्सा की, किन्तु दुःख मुक्त न कर सके, (२) मेरे पिता ने चिकित्सा में पानी की तरह सर्वस्व बहाया, किन्तु वे भी दुःखमुक्त न कर सके, (३) पुत्रदुःखपीड़ित माता भी दु:खमुक्त न कर सकी, (४) छोटे-बड़े भाई भी दुःखमुक्त न कर सके, (५) छोटी-बड़ी बहनें भी दुःखमुक्त न कर सकीं,