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उत्तराध्ययन सूत्र [७६] माता-पिता ने उससे कहा—पत्र ! अपनी इच्छानुसार तुम (भले ही ) प्रव्रज्या ग्रहण करो, किन्तु विशेष बात यह है कि श्रमणजीवन में निष्प्रतिकर्मता (-रोग होने पर चिकित्सा का निषेध) यह दुःखरूप है।
विवेचन—निष्प्रतिकर्मता : विधि-निषेध : एक चिन्तन—निष्प्रतिकर्मता का अर्थ है-रोगादि उत्पन्न होने पर भी उसका प्रतीकार-औषध आदि सेवन न करना। दशवैकालिकसूत्र में इसे अनाचीर्ण बताते हुए कहा गया है कि 'साधु चिकित्सा का अभिनन्दन न करे' तथा उत्तराध्ययनसूत्र सभिक्षुक अध्ययन में कहा गया है – 'जो चिकित्सा का परित्याग करता है, वह भिक्षु है।' यहाँ साध्वाचार के रूप में निष्प्रतिकर्मता का उल्लेख इसी तथ्य का समर्थन करता है। परन्तु यह विधान विशिष्ट अभिग्रहधारी या एकलविहारी निर्ग्रन्थ साधु के लिए प्रतीत होता है। मृगापुत्र द्वारा मृगचर्या से निष्प्रतिकर्मता का समर्थन
७७. सो बिंतऽम्मापियरो! एवमेयं जहाफुडं।
___ पडिकम्मं को कुणई अरण्णे मियपक्खिणं॥ [७७] वह (मृगापुत्र) बोला—माता-पिता ! (आपने जो कहा,) वह उसी प्रकार सत्य है, किन्तु अरण्य में रहने वाले पशुओं (मृग) एवं पक्षियों की कौन चिकित्सा करता है?
७८. एगभूओ अरण्णे वा जहा उ चरई मिगो।
एवं धम्म चरिस्सामि संजमेण तवेण य॥ [७८] जैसे—वन में मृग अकेला विचरण करता है, वैसे मैं भी संयम और तप के साथ (एकाकी होकर) धर्म (निर्ग्रन्थधर्म) का आचरण करूँगा।
७९. जया मिगस्स आयंको महारण्णम्मि जायई।
__ अच्छन्तं रुक्खमूलम्मि को णं ताहे तिगिच्छई? [७९] जब महावन में मृग के शरीर में आतंक (शीघ्र घातक रोग) उत्पन्न होता है, तब वृक्ष के नीचे (मूल में) बैठे हुए उस मृग की कौन चिकित्सा करता है?
८०. को वा से ओसहं देई? को वा से पुच्छइ सुहं?
को से भत्तं च पाणं च आहरित्तु पणामए? [८०] कौन उसे औषध देता है? कौन उससे सुख की (कुशल-मंगल या स्वास्थ्य की) बात पूछता है? कौन उसे भक्त-पान (भोजन-पानी) ला कर देता है?
८१. जया य से सुही होइ तया गच्छइ गोयरं।
___ भत्तपाणस्स अट्ठाए वल्लराणि सराणि य॥ १. (क) निष्प्रतिकर्मता-कथंचिद रोगोत्पत्तौ चिकित्साऽकरणरूपेति। - ब्रहवृत्ति, पत्र ४६२
(ख) 'तेगिच्छं नाभिनन्देज्जा'।-दशवै० अ० ३/३१-३३ (ग) . तिगिच्छियं च ..."तं परित्रायं परिव्वए स भिक्खू" - उत्तरा० अ० १५, गा०८