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उत्तराध्ययन सूत्र
के नाम इस प्रकार हैं—(१) अम्ब, (२) अम्बरीष, (३) श्याम, (४) शबल, (५) रुद्र, (६) महारुद्र, (७) काल, (८) महाकाल, (९) असिपत्र, (१०) धनुष, (११) कुम्भ, (१२) बालुक, (१३) वैतरणी, (१४) खरस्वर और (१५) महाघोष।
___ यहाँ जिन यातनाओं का वर्णन किया गया है, उनमें से बहुत-सी यातनाएँ इन्हीं १५ परमाधर्मी असुरों द्वारा दी जाती हैं।
कंदुकुंभीसु ...तीन अर्थ-(१) कंदुकुम्भी-लोह आदि धातुओं से निर्मित पाकभाजनविशेष । (२) कन्दु का अर्थ है-भाड़ (भ्राष्ट्र) और कुम्भी का अर्थ है-घड़ा, अर्थात् भाड़ की तरह का विशेष कुम्भ। अथवा (३) ऐसा पाकपात्र, जो नीचे से चौड़े और ऊपर से संकड़े मुँह वाला हो।
हुताशन : अग्नि- नरक में बादर अग्निकायिक जीव नहीं होते, इसलिए वहाँ पृथ्वी का स्पर्श ही वैसा उष्ण प्रतीत होता है। यहाँ जो हुताशन (अग्नि) का उल्लेख है, वह सजीव अग्नि का नहीं अपितु देवमाया (विक्रिया) कृत अग्निवत् उष्ण एवं प्रकाशमान् पुद्गलों का द्योतक है।
___ वइरबालुए कलंबबालुयाए- नरक में वज्रबालुका और कदम्बबालुका नाम की नदियाँ हैं, उनके पुलिन (तटवर्ती बालुमय प्रदेश) को भी वज्रबालुका और कदम्बबालुका कहते हैं, जो महादावाग्नि सदृश अत्यन्त तप्त रहते हैं।
कोलसुणए-कोल का अर्थ है-सूअर और शुनक का अर्थ है-कुत्ता। अथवा कोलशुनक का अर्थ-बृहवृत्ति में सूअर किया गया है। अर्थात् -सूकर-कुक्कुर स्वरूपधारी श्याम और शबल परमाधार्मिकों
द्वारा।
__ कड्ढोकड्ढाहिं—कृष्ट एवं अवकृष्ट-अर्थात्-खींचातानी करके। ___ रोज्झो : रोझ-वृत्तिकार ने रोझ का अर्थ पशुविशेष किया है, परन्तु देशी नाममाला में रोझ का अर्थ मृग की एक जाति किया गया है।
___ मुसंढीहिं : मुषण्ढियों से—देशी नाममाला के अनुसार-मुषण्ढी लकड़ी का बना एक शस्त्र है, जिसमें लोहे के गोल कांटे लगे रहते हैं।
विदंसएहिं—विदंशकों—विशेषरूप से दंश देने वाले विदंशकों अर्थात्-पक्षियों को पकड़ने वाले बाज पक्षियों से। प्रस्तुत ६५वीं गाथा का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार इस लोक में पारधी (बहेलिए) १. (क) बृहवृत्ति, पत्र ४५९ (ख) समवायांग, समवाय १५ वृत्ति, पत्र २८ २. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४५९ (ख) उत्तरा० विवेचन (मुनि नथमल) भा० २, पृ. १४८ ३. (क) 'तत्र च बादराग्नेरभावात् पृथिव्या एवं तथाविध: स्पर्श इति गम्यते।'
(ख) अग्नौ देवमायाकृते। - बृहद्वृत्ति, पत्र ४५९ ४. वही, पत्र ४५९ ५. (क) उत्तरा० प्रियदर्शिनीटीका, भा० ३, पृ० ५२४
(ख) बृहद्वृत्ति, पत्र ४६० : "कोलसुणएहिं -सूकरस्वरूपधारिभि:।" ६. कड्ढोकड्ढाहिं-कर्षणापकर्षणैः परमाधार्मिककृतैः । - बृहद्वृत्ति, पत्र ४५९ ७. (क) रोज्झः -पशुविशेष : ।- बृहवृत्ति, पत्र ४६० (ख) देशी नाममाला, ७/१२ ८. देशी नाममाला, श्लोक १५१ : 'मण्डी स्याहारुमयी वृत्तायः कीलसंचिता।'