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________________ ३०२ उत्तराध्ययन सूत्र [६६] पक्षी की भांति बाज पक्षियों, जालों तथा वज्रलेपों के द्वारा मैं अनन्त बार पकड़ा गया, चिपकाया गया, बांधा गया और मारा गया। ६७. कुहाड-फरसुमाईहिं वड्ढईहिं दुमो विव। कुट्टिओ फालिओ छिन्नो तच्छिओ य अणन्तसो॥ [६७] सुथारों के द्वारा वृक्ष की तरह कुल्हाड़ी और फरसा आदि से मैं अनन्त बार कूटा गया, फाड़ा गया, काटा गया और छीला गया हूँ। ६८. चवेडमुट्ठिमाईहिं कुमारेहिं अयं पिव। ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो चुण्णिओ य अणन्तसो॥ __ [६८] लुहारों के द्वारा लोहे की भांति (परमाधर्मी असुरकुमारों द्वारा) थप्पड़ और मुक्कों आदि से अनन्त बार पीटा गया, कूटा गया, खण्ड-खण्ड किया गया और चूर-चूर किया गया। ६९. तत्ताई तम्बलोहाइं तउयाई सीसयाणि य। __पाइओ कलकलन्ताई आरसन्तो सुभेरवं॥ [६९] भयंकर आक्रन्दन करते हुए मुझे कलकलाता—उबलता गर्म तांबा, लोहा, रांगा और सीसा पिलाया गया। ७०. तुहं पियाई मंसाई खण्डाई सोल्लगाणि य। खाविओ मि समंसाई अग्गिवण्णाई णेगसो॥ [७०] 'तुझे टुकड़े-टुकड़े किया हुआ और शूल में पिरो कर पकाया हुआ मांस प्रिय था' - (यह याद दिला कर) मुझे अपना ही (शरीरस्थ) मांस (काट कर और उसे तपा कर) अग्नि जैसा लाल रंग का ( बना कर) बार-बार खिलाया गया। ७१. तुहं पिया सुरा सीहू मेरओ य महूणि य। पाइओ मि जलन्तीओ वसाओ रुहिराणि य॥ [७१] 'तुझे सुरा, सीधु, मैरेय और मधु (पूर्वभव में) बहुत प्रिय थी', (यह स्मरण करा कर) मुझे जलती (गर्म की) हुई, (मेरी अपनी ही ) चर्बी और रक्त पिलाया गया। ७२. निच्चं भीएणं तत्थेण दहिएण वहिएण य। परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेड्यामए॥ [७२] मैंने (पूर्वजन्मों में नरक में इस प्रकार) नित्य ही भयभीत, संत्रस्त, दुःखित और व्यथित रहते हुए दुःख से सम्बद्ध (-परिपूर्ण) उत्कट वेदनाओं का अनुभव किया है। ७३. तिव्व-चण्ड-प्पगाढाआ घोराओ अइदुस्सहा। महब्भयाओ भीमाओ नरएसु वेड्या मए॥ [७३] मैंने नरकों में तीव्र, प्रचण्ड, प्रगाढ़ घोर, अति:दुःसह, महाभयंकर और भीषण वेदनाओं का अनुभव किया है।
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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