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________________ उन्नीसवाँ अध्ययन : मृगापुत्रीय ३०१ [५८] पापकर्मों से आवृत्त मैं परवश होकर जलती हुई अग्नि की चिताओं में भैंसे की तरह जलाया और पकाया गया हूँ। ५९. बला संडासतुण्डेहिं लोहतुण्डेहि पक्खिहिं। विलुत्तो विलवन्तोऽहं ढंक-गिद्धेहिऽणन्तसो॥ [५९] लोहे-सी कठोर और संडासी जैसी चोंच वाले ढंक एवं गिद्ध पक्षियों द्वारा मैं रोताबिलखता बलात् अनन्तबार नोचा। ६०. तण्हाकिलन्तो धावन्तो पत्तो वेयरणिं नदिं। जलं पाहिं ति चिन्तन्तो खुरधाराहिं विवाइओ॥ [६०] पिपासा से व्याकुल हो कर, दौड़ता हुआ मैं वैतरणी नदी पर पहुँचा और 'जल पीऊंगा', यह विचार कर ही रहा था कि सहसा छुरे की धार-सी तीक्ष्ण जल-धारा से मैं चीर दिया गया। ६१. उण्हाभितत्तो संपत्तो असिपत्तं महावणं। असिपत्तेहिं पडन्तेहिं छिन्नपुव्वो अणेगसो॥ [६१] गर्मी से अत्यन्त तप जाने पर मैं (छाया में विश्राम के लिए) असिपत्र महावन में पहुँचा, किन्तु वहाँ गिरते हुए असिपत्रों (खड्ग-से तीक्ष्ण धार वाले पत्तों) से अनेक बार छेदा गया। ६२. मुग्गरेहिं मुसंढीहिं सूलेहिं मुसलेहि य। गयासं भग्गगत्तेहिं पत्तं दुक्खं अणन्तसो॥ [६२] मेरे शरीर को चूर-चूर करने वाले मुद्गरों से, मुसंढियों से, त्रिशूलों (शूलों) से और मूसलों से (रक्षा के लिए) निराश होकर मैंने अनन्त बार दुःख पाया है। ६३. खरेहि तिक्खधारेहिं छरियाहिं कप्पणीहि य। ___कप्पिओ फालिओ छिन्नो उक्कत्तो य अणेगसो॥ [६३] तीखी धार वाले छुरों (उस्तरों ) से, छुरियों से और कैंचियों से मैं अनेक बार काटा गया हूँ, फाड़ा गया हूँ, छेदा गया हूँ और मेरी चमड़ी उधेड़ी गई है। ६४. पासेहिं कूडजालेहिं मिओ वा अवसो अहं। __ वाहिओ बद्धरुद्धो अ बहुसो चेव विवाइओ॥ [६४] मृग की भांति विवश बना हुआ पाशों और कूट (कपटयुक्त) जालों से मैं अनेक बार छलपूर्वक पकड़ा गया, (बंधनों से) बांधा गया, रोका (बंद कर दिया) गया और विनष्ट किया गया हूँ। ६५. गलेहिं मगरजालेहिं मच्छो वा अवसो अहं। उल्लिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अणन्तसो॥ [६५] गलों (-मछली को फंसाने के कांटों) से, मगरों को पकड़ने के जालों से मत्स्य की तरह बना हुआ मैं अनन्त बार बींधा (या खींचा) गया, फाड़ा गया, पकड़ा गया और मारा गया। ६६. वीदंसएहि जालेहिं लेप्पाहिं सउणो विव। गहिओ लग्गो बद्धो य मारिओ य अणन्तसो॥
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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