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________________ ३०० उत्तराध्ययन सूत्र [५१] महादावानल के तुल्य, मरुदेश की बालू के समान तथा वज्रबालुका (वज्र के समान कर्कश एवं कंकरीली रेत) में और कलम्बबालुका (नदी के पुलिन) की (तपी हुई) बालू में अनन्त बार मैं जलाया गया हूँ। ५२. रसन्तो कंदुकुम्भीसु उड्डूं बद्धो अबन्धवो। ___ करवत्त-करकयाईहिं छिन्नपुव्वो अणन्तसो॥ [५२] बन्धु-जनों से रहित (असहाय) रोता-चिल्लाता हुआ मैं कन्दुकुम्भियों पर ऊँचा बांधा गया तथा करपत्र (करवत) और क्रकच (आरे) आदि शस्त्रों से अनन्त बार छेदा गया हूँ। ५३. अइतिक्खकंटगाइण्णे तुंगे सिम्बलिपायवे। खेवियं पासबद्धणं कड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं॥ [५३] अत्यन्त तीक्ष्ण कांटों से व्याप्त ऊँचे शाल्मलिवृक्ष पर पाश से बांध कर इधर-उधर खींचतान करके दुःसह कष्ट दे कर मुझे फैंका (या खिन्न किया ) गया। ५४. महाजन्तेस उच्छू वा आरसन्तो सभेरवं। पीलिओ मि सकम्मेहिं पावकम्मो अणन्तसो॥ [५४] अतीव भयानक आक्रन्दन करता हुआ मैं पापकर्मा अपने (अशुभ) कर्मों के कारण गन्ने की तरह-बड़े-बड़े महाकाय यंत्रों में अनन्त बार पीला गया हूँ। ५५. कूवन्तो कोलसुणएहिं सामेहिं सबलेहि य। पाडिओ फालिओ छिन्नो विप्फुरन्तो अणेगसो॥ [५५] मैं (इधर-उधर) भागता और चिल्लाता हुआ श्याम (काले) और सबल (चितकबरे) सूअरों और कुत्तों से (परमाधर्मी असुरों द्वारा) अनेक बार गिराया गया, फाड़ा गया और छेदा गया हूँ। ५६. असीहि अयसिवण्णाहिं भल्लीहिं पट्टिसेहि य। छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य ओइण्णो पावकम्मुणा॥ [५६] पापकर्मों के कारण मैं नरक में जन्मा और (वहाँ) अलसी के फूलों के सदृश नीले रंग की तलवारों से, भालों से और लोहे के दण्डों (पट्टिश नामक शस्त्रों) से छेदा गया, भेदा गया और टुकड़ेटुकड़े किया गया। ५७. अवसो लोहरहे जुत्तो जलन्ते समिलाजुए। चाइओ तोत्तजुत्तेहिं रोज्झो वा जह पाडिओ॥ [५७] समिला (जुए के छेदों में लगाने की कील) से युक्त जुए वाले जलते हुए लोहमय रथ में विवश करके मैं जोता गया हूँ, चाबुक और रास (नाक में बांधी गई रस्सी) से हांका गया हूँ, फिर रोझ की तरह (लट्ठी आदि से पीट कर जमीन पर) गिराया गया हूँ। ५८. हुयासणे जलन्तम्मि चियासु महिसो विव। दड्ढो पक्को य अवसो पावकम्मेहि पाविओ॥
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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