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________________ २८८ उत्तराध्ययन सूत्र मृगापुत्रीय * इसके युक्तिपूर्वक समाधान के लिए माता-पिता के समक्ष नरक आदि में सहे हुए कष्टों और ___ दुःखों का मार्मिक वर्णन किया। (गा. ४४ से ७४ तक) * तब माता-पिता ने कहा –दीक्षित हो जाने पर एकीकी विचरण करने वाले श्रमण का कोई सहायक नहीं होता, वह रोगचिकित्सा नहीं करता, यह एक समस्या है! किन्तु मृगापुत्र ने उन्हें जंगल में एकाकी विचरण करने वाले मृगों की समग्र चर्या का वर्णन करके यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य अगर अभ्यास करे तो उसके लिए रोग का अप्रतीकार तथा अन्य मृगचर्या, निर्दोष भिक्षाचर्या आदि कठिन नहीं है। मैं स्वयं मृगचर्या का आचरण करने का संकल्प लेता हूँ। (गा. ७५से ८५ तक) * इसके पश्चात् शास्त्रकार ने मृगापुत्र की साधुचर्या, समता, एवं साधुता के गुणों के विषय में उल्लेख किया है। अन्त में मृगापुत्र की तरह समस्त साधु-साध्वियों को श्रमणधर्म के पालन का निर्देश दिया है एवं उसके द्वारा आचरित श्रमणधर्म का सर्वोत्कृष्ट फल भी बतलाया है। (गा. ८६ से ९८ तक) मृगापुत्र के दृढ़ संकल्प को, उसके अनुभवों और पूर्वजन्म की स्मृति के आधार पर बने हुए संयमानुराग को माता-पिता तोड़ नहीं सके, अन्त में दीक्षा की अनुमति दे दी। मृगापुत्र मुनि बने, उन्होंने मृगचारिका की साधना की, श्रमणधर्म का जागृत रहकर पालन किया, और अन्त में सिद्धि प्राप्त की।
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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