SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -उत्तराध्ययन/३६ जागरूकता का सन्देश चतुर्थ अध्ययन का नाम समवायांग में८१ 'असंखयं है। उत्तराध्ययननियुक्ति में 'प्रमादाप्रमाद' नाम दिया है। २ नियुक्तिकार ने अध्ययन में वर्णित विषय के आधार पर नाम दिया है तो समवायांग में जो नाम है वह प्रथम गाथा के प्रथम पद पर आधृत है। अनुयोगद्वार से भी इस बात का समर्थन होता है।३ व्यक्ति सोचता है अभी तो मेरी युवावस्था है, धर्म वृद्धावस्था में करूँगा, पर उसे पता नहीं कि वृद्धावस्था आयेगी अथवा नहीं? इसलिए भगवान् ने कहा-धर्म करने में प्रमाद न करो! जो व्यक्ति यह सोचते हैं कि अर्थ पुरुषार्थ है, अत: अर्थ मेरा कल्याण करेगा, उन्हें यह पता नहीं कि अर्थ अनर्थ का कारण है। तुम जिस प्रकार के कर्मों का उपार्जन करोगे उसी प्रकार का फल प्राप्त होगा। "कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि" -कृत कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं है। इस प्रकार अनेक जीवनोत्थान के तथ्यों का प्रतिपादन प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है और साधक को यह प्रेरणा दी गई है कि वह प्रतिपल-प्रतिक्षण जागरूक रहकर साधना के पथ पर आगे बढ़े। चतुर्थ अध्ययन की प्रथम और तृतीय गाथा में जो भाव अभिव्यक्त हुए हैं, वैसे ही भाव बौद्धग्रन्थअंगुत्तरनिकाय तथा थेरगाथा में भी आये हैं। हम जिज्ञासुओं के लिए यहाँ पर उन गाथाओं को तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन करने हेतु दे रहे हैं। देखिए "असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं। एवं वियोणाहि जणे पमत्ते, कण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति ॥"-उत्तराध्ययनसूत्र ४/१ तुलना कीजिए "उपनीयति जीवितं अप्पमायु, जरूपनीतस्स न सन्ति ताणा। एतं भयं मरणे पेक्खमाणो, पुञानि कयिराथ सुखावहानि ॥"-अंगुत्तरनि., पृष्ठ १५९ "तेणे जहा सन्धिमुहे गहीए, सकम्मुणा किच्चइ पावकारी। एवं पया पेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि॥"-उत्तराध्ययन ४/३ तुलना कीजिए "चोरो यथा सन्धिमुखे गहीतो, सकम्मुना हजति पापधम्मो। एवं पजा पेच्च परम्हि लोके, सकम्मुना हजति पापधम्मो॥" -थेरगाथा ७८९ मृत्यु : एक चिन्तन पांचवें अध्ययन में अकाम-मरण के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। भारत के तत्त्वदर्शी ऋषि महर्षि और सन्तगण जीवन और मरण के सम्बन्ध में समय-समय पर चिन्तन करते रहे हैं। जीवन सभी को प्रिय है और मृत्यु अप्रिय है। जीवित रहने के लिए सभी प्रयास करते हैं और चाहते हैं कि हम दीर्घकाल तक जीवित रहें। उत्कट जिजीविषा प्रत्येक प्राणी में विद्यमान है। पर सत्य यह है कि जीवन के साथ मृत्यु का चोली-दामन का सम्बन्ध है। न चाहने पर भी मृत्यु निश्चित है, यहाँ तक कि मृत्यु की आशंका से मानव और पशु ही नहीं ८१. छत्तीसं उत्तरज्झयणा प. तं. –विणयसुयं ----असंखयं---समवायांग, समवाय ३६ ८२. पंचविहो अपमाओ इहमज्झयणमि अप्पमाओ य। वण्णिएज उ जम्हा तेण पमायप्पमायति ॥ - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा १८१ ८३. अनुयोगद्वार, सूत्र १३० : पाठ के लिए देखिये पृ. ३९ पा. टि. १
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy