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________________ अठारहवाँ अध्ययन : संजयीय २६५ के साथ परलोक में जाता है। वहाँ कोई भी सगे-संबंधी दुःख भोगने नहीं आते; उसके मरने के बाद उसके द्वारा पापकर्म से या कष्ट से उपार्जित धन आदि का उपयोग दूसरे ही करते हैं, वे उसकी कमाई पर मौज उड़ाते हैं ।१ निष्कर्ष मुनि ने राजा को अभयदान देने, राज्यत्याग करने, कर्मपरिणामों की निश्चितता एवं परलोकहित को सोचने तथा अनित्य जीवन, यौवन, बन्धु-बान्धव आदि के प्रति आसक्ति के त्याग का उपदेश दिया। विरक्त संजय राजा जिनशासन में प्रव्रजित १८. सोऊण तस्स सो धम्मं अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिव्वेयं समावन्नो नराहिवो ॥ [१८] उन गर्दभालि अनगार ( के पास) से महान् (श्रुत - चारित्ररूप) धर्म ( का उपदेश ) श्रवण कर वह संजय नराधिप महान् संवेग और निर्वेद को प्राप्त हुआ । १९. संजओ चइउं रज्जं निक्खन्तो जिणसासणे । गद्दभास्सि भगवओ अणगारस्स अन्तिए । [१९] राज्य का परित्याग करके वह संजय राजा भगवान् गर्दभालि अनगार के पास जिनशासन में प्रव्रजित हो गया । रज्जं विवेचन - महया : दो अर्थ - (१) महान् संवेग और निर्वेद अथवा (२) महान् आदर के साथ। संवेग और निर्वेद — संवेग का अर्थ है— मोक्ष की अभिलाषा और निर्वेद का अर्थ है— संसार से उद्विग्नता—विरक्ति । — राज्य को । २ क्षत्रियमुनि द्वारा संजयराजर्षि से प्रश्न २०. चिच्चा रट्ठ पव्वइए खत्तिए परिभासइ । जहा ते दीसई रूवं पसन्नं ते तहां मणो ॥ [२०] जिसने राष्ट्र का परित्याग करके दीक्षा ग्रहण कर ली, उस क्षत्रिय ( मुनि) ने ( एक दिन) संजय राजर्षि से कहा- ' (मुने!) जैसे आपका यह रूप ( बाह्य आकार) प्रसन्न (निर्विकार) दिखाई दे रहा है, वैसे ही आपका मन (अन्तर) भी प्रसन्न दीख रहा है । ' २१. किंनामे ? किंगोत्ते ? कस्सट्ठाए व माहणे ? । कहं पडियरसी बुद्धे ? कहं विणीए त्ति वुच्चसि ? ॥ [२१] (क्षत्रियमुनि) - 'आपका क्या नाम है ? आपका गोत्र कौन-सा है? आप किस प्रयोजन से माहन बने हैं? तथा बुद्धों - आचार्यों की किस प्रकार से सेवा (परिचर्या) करते हैं? एवं आप विनयशील क्यों कहलाते हैं?' १. उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति, पत्र ४४०, ४४१ २. उत्तराध्ययन, बृहद्वृत्ति, पत्र ४४१
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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