________________
उत्तराध्ययनसूत्र
[१३] राजन! तू जिस पर मोहित हो रहा है, वह जीवन और रूप विद्युत् की चमक के समान चंचल है। तू अपने परलोक के हित (अर्थ) को नहीं जान रहा है।
1
२६४
१४. दाराणि य सुया चेव मित्ता य तह बन्धवा ।
जीवन्तमणुजीवन्ति मयं नाणुव्वयन्ति य ॥
[१४] (इस स्वार्थी संसार में) स्त्रियाँ, पुत्र, मित्र तथा बन्धुजन, (ये सब ) जीवित व्यक्ति के साथी हैं, मृत व्यक्ति के साथ कोई नहीं जाता।
१५.
नीहरन्ति मयं पुत्ता पियरं परमदुक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते बन्धू रायं ! तवं चरे ॥
[१५] अत्यन्त दुःखित होकर पुत्र अपने मृत पिता को (घर से बाहर) निकाल देते हैं । इसी प्रकार (मृत) पुत्रों को पिता और बन्धुओं को (बन्धुजन) भी बाहर निकाल देते हैं । अतः हे राजन् ! तू तपश्चर्या
कर ।
१६. तओ तेणऽजिए दव्वे दारे य परिरक्खिए । कीलन्तऽन्ने नरा रायं! हट्ठ-तुट्ठ-मलंकिया ॥
[१६] हे भूपाल ! मृत्यु के बाद उस (मृत व्यक्ति) के द्वारा उपार्जित द्रव्य को तथा सुरक्षित नारियों को दूसरे व्यक्ति (प्राप्त करके) आनन्द मनाते हैं; वे हष्ट-पुष्ट- सन्तुष्ट और विभूषित वस्त्राभूषणों से सुसज्जित) होकर रहते हैं ।
१७. तेणावि जं कयं कम्मं सुहं वा जइ वा दुहं । कम्णा तेण संजुत्तो गच्छई उ परं भवं ॥
[१७] उस मृत व्यक्ति ने (पहले) जो भी सुखहेतुक (शुभ) कर्म या दु:खहेतुक (अशुभ) कर्म किया है, (तदनुसार) वह उस कर्म से युक्त होकर परभव (परलोक) में (अकेला ही) जाता है।
1
विवेचन – अभओ पत्थिवा! तुज्झ — मुनि ने भयाकुल राजा को आश्वासन देते हुए कहा – हे राजन् ! मेरी ओर से तुम्हें कोई भय नहीं है।
विज्जुसंपाय चंचलं : अर्थ - बिजली के सम्पात, अर्थात् चमक के समान चपल।
'अभयदाया भवाहि य' : मुनि ने राजा को आश्वस्त करते हुए कहा — राजन् ! जैसे तुम्हें मृत्यु का भय लगा, वैसे दूसरे प्राणियों को भी मृत्यु का भय है । जैसे मैंने तुझे अभयदान दिया, वैसे तू भी दूसरे प्राणियों का अभयदाता बन ।
अणिच्चे जीवलोगम्मि०o - यह समग्र जीवलोक अनित्य है, इस दृष्टि से तुम भी अनित्य हो, तुम्हारा भी जीवन स्वल्प है। फिर इस स्वल्पकालिक जीवन के लिए क्यों हिंसा आदि पापों का उपार्जन कर रहे हो ? इसी प्रकार यह जीवन और सौन्दर्य आदि सब चंचल हैं तथा मृत्यु के अधीन बनकर एक दिन तुम्हें राज्य, धन, कोश आदि सब छोड़कर जाना पड़ेगा, फिर इन वस्तुओं के मोह में क्यों मुग्ध हो रहे हो ?
दाराणि य सुया चेव० – जिन स्त्री- पुत्रादि के लिए मनुष्य धन कमाता है, पापकर्म करता है, वे जीते-जी के साथी हैं, मरने के बाद कोई साथ में नहीं जाता। जीव अकेला ही अपने उपार्जित शुभाशुभ कर्मों