SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -उत्तराध्ययन/३४ भागवत और मनुस्मृति में आये हुए पद्यों के साथ की जा सकती है। उदाहरण के रूप में हम नीचे वह तुलना दे रहे हैं। देखिए "कालीपव्वंगसंकासे, किसे धमणिसंतए। मायने असणपाणस्स, अदीणमसो चरे॥" -उत्तराध्ययन २/३ तुलना कीजिए "काल (ला) पव्वंगसंकासो, किसो धम्मनिसन्थतो। मत्त अन्नपाणम्हि, अदीनमनसो नरो॥" -थेरगाथा २४६, ६८६ "अष्टचक्रं हि तद् यानं, भूतयुक्तं मनोरथम्। तत्राद्यौ लोकनाथौ तौ, कृशौ धमनिसंततौ॥" -शान्तिपर्व ३३४/११ "एवं चीर्णेन तपसा, मुनिर्धर्ममनिसर्गतः" -भागवत ११/१८/९ "पंसुकूलधरं जन्तुं, किसं धमनिसन्थतं। एकं वनस्मि झायन्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥"-धम्मपद २६/१३ "पुट्ठो य दंसमसएहिं, समरेव महामुणी। नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहरणे परं॥" -उत्तराध्ययन २/१० तुलना कीजिए "फुट्ठो डंसेहि मसकेहि, अरञ्जस्मि ब्रहावने। नागो संगामसीसे व, सतो तत्राऽधिवासये॥" -थेरगाथा ३४, २४७, ६८७ "एग एव चरे लाढे, अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए ॥"-उत्तराध्ययन २/१८ तुलना कीजिए "एक एव चरेन्नित्यं, सिद्धयर्थमसहायवान् । सिद्धिमेकस्य संपश्यन् न जहाति न हीयते ॥"-मनुस्मृति ६/४२ "असमाणो चरे भिक्खू, नेव कुज्जा परिग्गह। असंसत्तो गिहत्थेहिं, अणिएओ परिव्वए॥" -उत्तरा. २/१९ तुलना कीजिए "अनिकेतः परितपन्, वृक्षालाश्रयो मुनिः। अयाचकः सदा योगी, स त्यागी पार्थ ! भिक्षुकः॥" -शान्तिपर्व १२/१० 'सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ। अकुकुओ निसीएज्जा, न य वित्तासए परं॥" -उत्तरा. २/२० तुलना कीजिए "पांसुभिः समभिच्छिन्नः शून्यागारप्रतिश्रयः। वृक्षमूलनिकेतो वा, त्यक्तसर्वप्रियाप्रियः॥" --शान्तिपर्व ९/१३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy