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उत्तराध्ययन सूत्र
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(यशा) और उनके दोनों पुत्र; वीतराग अर्हत्-शासन में ( आ कर ) मोह को दूर करके थोड़े ही समय में, दुःख का अन्त कर परिनिर्वृत्त - (मुक्त) हो गए। - ऐसा मैं कहता हूँ ।
विवेचन-रज्जं : दो अर्थ - (१) राष्ट्र-राज्यमण्डल, अथवा (२) राज्य ।
निव्वसया निरामिसा : दो अर्थ - (१) राजा-रानी दोनों शब्दादि विषयों से रहित हुए अतः भोगासक्ति के कारणों से रहित हुए। (२) अथवा विषय अर्थात् - ( अपने राष्ट्र का परित्याग करने के कारण) देश से विरहित हुए तथा कामभोगों का परित्याग करने के कारण निरामिष-विषय भोगों की आसक्ति के कारणों से दूर हो गए।
निन्नेहा निष्परिग्गहा — निःस्नेह— किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध या प्रतिबद्धता से रहित, अतएव निष्परिग्रह- सचित्त - अचित्त, विद्यमान- अविद्यमान, द्रव्य और भाव सभी प्रकार के परिग्रहों से रहित हुए । सम्मं धम्मं वियाणित्ता — धर्म - श्रुत चारित्रात्मक धर्म को सम्यक् प्रकार से जान कर । १
घोरं घोरपर कम्मा : व्याख्या - (१) बृहद्वृत्ति के अनुसार तीर्थंकरादि के द्वारा यथोपदिष्ट अनशनादि घोर — अत्यन्तदुष्कर—उत्कट तप स्वीकार करके शत्रु के प्रति रौद्र पराक्रम की तरह कर्मशत्रुओं का क्षय करने में धर्माचरण विषयक घोर-कठोर पराक्रम वाले बने। (२) तत्त्वार्थराजवार्तिक के अनुसार ज्वर, सन्निपात आदि अत्यन्त भयंकर रोगों के होने पर भी जो अनशन, कायक्लेश आदि तपश्चरण में शिथिल नहीं होते और जो भयावह श्मशान, पर्वत- गुफा आदि में निवास करने अभ्यस्त होते हैं, वे 'घोर तपस्वी' हैं और ऐसे घोर तपस्वी जब अपने तप और योग को उत्तरोत्तर बढ़ाते जाते हैं, तब वे 'घोरपराक्रमी' कहलाते हैं। तप के अतिशय की जो सात प्रकार की ऋद्धियाँ बताई हैं, उनमें छठी ऋद्धि 'घोरपराक्रम' है । २
धम्मपरायणा: दो रूप : दो अर्थ – (१) धर्मपरायण - धर्मनिष्ठ । अथवा (२) धम्मपरंपर (पाठान्तर) — धर्मपरम्पर— जिन्हें परम्परा से (साधुदर्शन से दोनों कुमारों को, कुमारों के निमित्त से पुरोहितपुरोहितानी को, इन दोनों के निमित्त से रानी कमलावती को और रानी के द्वारा राजा को) धर्म मिला, ऐसे । ३
॥ इषुकारीय: चौदहवाँ अध्ययन समाप्त ॥
१. बृहद्वृत्ति, पत्र ४११
२. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४११ (ख) तत्त्वार्थराजवार्तिक ३/ ३६, पृ. २०३ ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ४११