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________________ चौदहवाँ अध्ययन : इषुकारीय २२७ परिग्गहारंभनियत्तऽदोसा : दो रूप : दो अर्थ - (१) परिग्रहारम्भनिवृत्ता और अदोषा ( दोषरहित) (२) परिग्रहारम्भदोषनिवृत्ता — परिग्रह और आरम्भरूप दोषों से निवृत्त । लहुभूयविहारिणो : दो अर्थ – (१) वायु की तरह लघुभूत — अप्रतिबद्ध हो कर विचरण करने वाले, (२) लघु अर्थात् संयम में विचरण करने के स्वभाव वाले । दिया कामकमा इव — काम — इच्छानुसार क्रमा— चलने वाले । अर्थात् — जैसे पक्षी स्वेच्छानुसार जहाँ चाहें, वहाँ उन्मुक्त एवं स्वेच्छापूर्वक भ्रमण करते हैं, वैसे हम भी स्वेच्छा से स्वतंत्रतापूर्वक विचरण करेंगे। बद्धा फंदते—बद्ध- - अनेक उपायों से नियंत्रित - सुरक्षित किये जाने पर भी स्पन्दन करते हैंक्षणिक हैं, इसलिए चले जाते हैं । २ राजा, रानी की प्रव्रज्या एवं छहों मुमुक्षु आत्माओं की क्रमशः मुक्ति ४९. चइत्ता विउलं रज्जं कामभोगे य दुच्चए । निव्विसया निरामिसा निन्नेहा निष्परिग्गहा ॥ [४९] विशाल राज्य और दुस्त्यज कामभोगों का परित्याग कर वे राजा और रानी भी निर्विषय (विषयों की आसक्ति से रहित), निरामिष, स्नेह ( सांसारिक पदार्थों के प्रति आसक्ति) से रहित एवं निष्परिग्रह हो गए। ५०. सम्मं धम्मं वियाणित्ता चेच्चा कामगुणे वरे । तवं पगिज्झऽहक्खायं घोरं घोरपरक्कमा ॥ [५०] धर्म को भलीभांति जान कर, फलतः उपलब्ध श्रेष्ठ कामगुणों को छोड़ कर तथा जिनवरों द्वारा यथोपदिष्ट घोर तप को स्वीकार कर दोनों ही तप-संयम में घोर पराक्रमी बने । ५१. एवं ते कमसो बुद्धा सव्वे धम्मपरायणा । जम्म- मच्चुभउव्विग्गा दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥ [५१] इस प्रकार वे सब (छहों मुमुक्षु आत्मा) क्रमश: बुद्ध (प्रतिबुद्ध अथवा तत्त्वज्ञ) हुए, धर्म ( चारित्रधर्म) में तत्पर हुए, जन्म-मरण के भय से उद्विग्न हुए, अतएव दुःख के अन्त का अन्वेषण करने में लग गए। ५२. सासणे विगयमोहाणं पुव्विं भावणभाविया । अचिरेणेव कालेण दुक्खस्सन्तमुवागया ॥ ५३. राया सह देवीए माहणो य पुरोहिओ । माहणी दारगा चैव सव्वे ते परिनिव्वुडे ॥ -त्ति बेमि । [५२-५३] जिन्होंने पूर्वजन्म में अपनी आत्मा को अनित्य, अशरण आदि भावनाओं से भावित किया था, वे सब रानी (कमलावती) सहित राजा (इषुकार), ब्राह्मण (भृगु) पुरोहित, उसकी पत्नी ब्राह्मणी १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४०९ २. वही, पत्र ४१०
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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