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________________ १९८ उत्तराध्ययनसूत्र चित्र - सम्भूतीय हुआ - यह मुनि मेरा पूर्ववृत्तान्त जानता है, अगर इसने वह रहस्य प्रकट कर दिया तो मेरी महत्ता नष्ट हो जाएगी । अतः नमुचि मंत्री के कहने से लाठी और मुक्कों से कई लोगों ने सम्भूतमुनि को पीटा और नगर से निकालना चाहा। कुछ देर तक मुनि शान्त रहे । परन्तु लोगों की अत्यन्त उग्रता को देख मुनि शान्ति और धैर्य खो बैठे। क्रोधवश उनके शरीर से तेजोलेश्या फूट पड़ी। मुख से निकलते हुए धुंए के घने बादलों से सारा नगर आच्छन्न हो गया। जनता घबराई । भयभीत लोग अपने अपराध के लिए क्षमा मांग कर मुनि को शान्त करने लगे। सूचना पाकर चक्रवर्ती सनत्कुमार भी घटनास्थल पर पहुँचे। अपनी त्रुटि के लिए चक्रवर्ती ने मुनि से क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि - भविष्य में हम ऐसा अपराध नहीं करेंगे, महात्मन् ! आप नगर-निवासियों को जीवनदान दें।' इतने पर भी सम्भूतमुनि का कोप शान्त न हुआ तो उद्यानस्थित चित्रमुनि भी सूचना पाकर तत्काल वहाँ आए और उन्होंने सम्भूतमुनि को क्रोधानल उपशान्त करने एवं अपनी शक्ति (तेजोलेश्या की लब्धि) को समेटने के लिए बहुत ही प्रिय वचनों से समझाया। सम्भूतमुनि शान्त हुए । उन्होंने तेजोलेश्या समेट ली । अन्धकार मिटा नागरिक प्रसन्न हुए। दोनों मुनि उद्यान में लौट आए। सोचा- हम कायसंलेखना कर चुके हैं, अतः अब यावज्जीवन अनशन करना चाहिए। दोनों मुनियों ने अनशन ग्रहण किया । चक्रवर्ती ने जब यह जाना कि मंत्री नमुचि के कारण सारे नगर को यह त्रास सहना पड़ा, तो उसने मंत्री को रस्सों से बांध कर मुनियों के पास ले जाने का आदेश दिया। मुनियों ने रस्सी से जकड़े हुए मंत्री को देख कर चक्रवर्ती को समझाया और मन्त्री को बन्धनमुक्त कराया। चक्रवर्ती मुनियों के तेज से प्रभावित होकर उनके चरणों में गिर पड़ा। चक्रवर्ती की रानी सुनन्दा ने भी भावुकतावश सम्भूतमुनि के चरणों में सिर झुकाया । उसकी कोमल केश राशि के स्पर्श से मुनि को सुखद अनुभव हुआ, मन ही मन वह निदान करने का विचार करने लगा। चित्रमुनि ने ज्ञानबल से जब यह जाना तो सम्भूतमुनि को निदान न करने की शिक्षा दी, पर उसका भी कुछ असर न हुआ । सम्भूतमुनि ने निदान कर ही लिया-'यदि मेरी तपस्या का कुछ फल हो तो भविष्य में मैं चक्रवर्ती बनूं।' 1 दोनों मुनियों का अनशन पूर्ण हुआ । आयुष्य पूर्ण कर दोनों सौधर्म देवलोक में पहुँचे। पांच जन्मों तक साथ-साथ रहने के बाद छठे जन्म में दोनों ने अलग-अलग स्थानों में जन्म लिया। चित्र का जीव पुरिमताल नगर में एक अत्यन्त धनाढ्य सेठ का पुत्र हुआ और सम्भूत के जीव ने काम्पिल्यनगर में ब्रह्मराजा की रानी चूलनी के गर्भ से जन्म लिया। बालक का नाम रखा गया 'ब्रह्मदत्त'। * आगे चल कर यही ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बना। इसकी बहुत लम्बी कहानी है। वह यहाँ अप्रासंगिक है। * एक दिन अपराह्न में ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती एक नाटक देख रहा था। नाटक देखते हुए मन में यह विकल्प
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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