________________
उत्तराध्ययन/२८ अंग, प्रकीर्णक और दृष्टिवाद का उल्लेख उपलब्ध होता है।४९ अतः प्रस्तुत अध्ययन भी उत्तरकालीन आगमव्यवस्था की संरचना होनी चाहिए।
दूसरी बात यह है कि अट्ठाईसवें अध्ययन में द्रव्य ५०, गुण ५१, पर्याय ५२ की जो संक्षिप्त परिभाषायें दी गई हैं, वैसी परिभाषायें प्राचीन आगम साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं। वहाँ पर विवरणात्मक अर्थ की प्रधानता है, अत: यह अध्ययन अर्वाचीन प्रतीत होता है।
दिगम्बर साहित्य में उत्तराध्ययन की विषयवस्तु का संकेत किया गया है। वह इस प्रकार है
धवला में लिखा है-उत्तराध्ययन में उद्गम, उत्पादन और एषणा से सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्तों का विधान है ५३ और उत्तराध्ययन उत्तर पदों का वर्णन करता है। ५४
अंगपण्णत्ती में वर्णन है कि बाईस परीषहों और चार प्रकार के उपसर्गों के सहन का विधान, उसका फल तथा प्रश्नों का उत्तर; यह उत्तराध्ययन का प्रतिपाद्य विषय है।५
हरिवंशपुराण में आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि उत्तराध्ययन में वीर-निर्वाण गमन का वर्णन है।५६
दिगम्बर साहित्य में जो उत्तराध्ययन की विषयवस्तु का निर्देश है, वह वर्णन वर्तमान में उपलब्ध उत्तराध्ययन में नहीं है। आंशिक रूप में अंगपण्णत्ती का विषय मिलता है, जैसे (१) बाईस परीषहों के सहन करने का वर्णन-दूसरे अध्ययन में । (२) प्रश्नों के उत्तर-उनतीसवाँ अध्ययन।
प्रायश्चित का विधान और भगवान् महावीर के निर्वाण का वर्णन उत्तराध्ययन में प्राप्त नहीं है। यह हो सकता है कि उन्हें उत्तराध्ययन का अन्य कोई संस्करण प्राप्त रहा हो। तत्त्वार्थराजवार्तिक में उत्तराध्ययन को आरातीय आचार्यों (गणधरों के पश्चात् के आचार्यों) की रचना माना गया है।५७
समवायांग ५८ और उत्तराध्ययननियुक्ति५९ आदि में उत्तराध्ययन की जो विषय-सूची दी गई है, वह ४९. सा होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं।
एक्कारस अंगाई, पइण्णगं, दिट्ठिवाओ य॥- उत्तरा. २८/२३ ५०. द्रव-गुणाणमासओ दव्वं (द्रव्य गुणों का आश्रय है)। तुलना करें -क्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम्।
-वैशेषिकदर्शन, प्र. अ. प्रथम आह्निक, सूत्र १५ ५१. गुण- एगदव्वस्सिया गुणा। तुलना करें. द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागेष्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम्। -वैशे. दर्शन, प्र. अ. प्रथम आह्निक, सू. १६ ५२. पर्याय-लक्खणं पण्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे। -उत्तराध्ययन ५३. उत्तरायणं उग्गम्मुपायणेसणदोसगयपायच्छित्तविहाणं कालादिविसेसिदं वण्णेदि। धवला, पत्र ५४५, हस्तलिखित ५४. उत्तरज्झयणं उत्तरपदाणि वण्णेइ। -धवला, पृ. ९७ (सहारनपुर प्रति)। ५५. उत्तराणिं अहिज्जति उत्तरायणं पदं जिणिदेहिं।
बावीसपरीसहाणं उवसग्गाणं च सहणविहिं॥ वण्णेदि तप्फलमवि, एवं पण्हे च उत्तरं एवं।
कहदि गुरुसीसयाण पइण्णिय अट्ठमं तु खु॥-अंगपण्णत्ति, ३/२५-२६ ५६. उत्तराध्ययनं वीर-निर्वाणगमनं तथा। -हरिवंशपुराण, १०/१३४ ५७. यद्गणधरशिष्यप्रशिष्यैरारातीयैरधिगतश्रुतार्थतत्त्वैः कालदोषादल्पमेधायुर्बलानां प्राणिनामनुग्रहार्थमुपनिबद्धं
संक्षिप्तांगार्थवचनविन्यासं तदंगबाह्यम्..... तद्भेदा उत्तराध्ययनादयोऽनेकविधाः।-तत्त्वार्थवार्तिक, १/२० पृष्ठ ७८ ५८. समवायांग, ३६ वां समवाय
५९. उत्तराध्ययननियुक्ति, १८-२६