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________________ बारसमं अज्झयणं : बारहवाँ अध्ययन हरिएसिज्ज : हरिकेशीय हरिकेशबल मुनि का मुनिरूप में परिचय १. सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी। ___ हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइन्दिओ॥ __[१] हरिकेशबल नामक मुनि श्वपाक-चाण्डाल कुल में उत्पन्न हुए थे, (फिर भी वे ) ज्ञानादि उत्तम गुणों के धारक और जितेन्द्रिय भिक्षु थे। ____२. इरि-एसण-भासाए उच्चार-समिईसु य। जओ आयाणनिक्खेवे संजओ सुसमाहिओ॥ [२] वे ईर्या, एषणा, भाषा, उच्चार (परिष्ठापन) और आदान-निक्षेप (इन पांच) समितियों में यत्नशील, संयत (संयम में पुरुषार्थी) और सुसमाधिमान् थे। ३. मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइन्दिओ। भिक्खट्ठा बम्भ-इजमि जनवाडं उवट्ठिओ॥ ___ [३] वे मनोगुप्ति वचनगुप्ति और कायगुप्ति से युक्त जितेन्द्रिय मुनि भिक्षा के लिए यज्ञवाट (यज्ञमण्डप) में पहुंचे, जहाँ ब्राह्मणों का यज्ञ हो रहा था। विवेचन–श्वपाककुल में उत्पन्न–श्वपाककुल : बृहद्वृत्तिकार के अनुसार-चाण्डालकुल, चूर्णिकार के अनुसार-जिस कुल में कुत्ते का मांस पकाया जाता है, वह कुल; नियुक्तिकार के अनुसार-हरिकेश, चाण्डाल, श्वपाक, मातंग, बाह्य, पाण, श्वानधन, मृताश, श्मशानवृत्ति और नीच, ये सब एकार्थक हैं। हरिएसबलो-हरिकेशबल : अर्थ-हरिकेश मुनि का गौत्र था और बल उनका नाम था। उस युग में नाम के पूर्व गोत्र का प्रयोग होता था। बृहद्वृत्तिकार के अनुसार हरिकेशनाम गोत्र का वेदन करने वाला। मुणी-मुनि : दो अर्थ-(१) बृहद्वृत्ति के अनुसार-'सर्वविरति की प्रतिज्ञा लेने वाला' और (२) चूर्णि के अनुसार-धर्म-अधर्म का मनन करने वाला। १. (क) श्वपाकाः चण्डालाः। -बृहद्वृत्ति, पत्र ३५७ (ख) हरिएसा चंडाला सोवाग मयंग बाहिरा पाणा। साणधणा य मयासा सुसाणवित्ती य नीया य॥ -उत्त. नियुक्ति, गा. ३२३ २. (क) हरिकेशः-सर्वत्र हरिकेशतयैव प्रतीतो, बलो नाम-बलाभिधानम्।-बृहवृत्ति, पत्र ३५७ (ख) हरिकेशनाम-गौत्रं वेदयन्।-उत्त. नियुक्ति, गा. ३२० का अर्थ ३. (क) 'मुणति-प्रतिजानीते सर्वविरतिमिति मुणिः।' -बृहवृत्ति, पत्र ३५७ (ख) 'मनुते-मन्यते वा धर्माऽधानिति मुनिः।' -उत्त. चूर्णि, पृ. २०३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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