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दशम अध्ययन : द्रुमपत्रक
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[२८] जिस प्रकार शरत्कालीन कुमुद (चन्द्रविकासी कमल) पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तू भी अपने स्नेह को विच्छिन्न [दूर] कर। तू सभी प्रकार से स्नेह का त्याग करके गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत कर।
२९. चिच्चाण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अवगारियं।
मा वन्तं पुणो वि आइए समयं गोयम! मा पमायए॥ [२९] हे गौतम! धन और पत्नी (आदि) का परित्याग करके तुम अनगारधर्म में प्रव्रज़ित (दीक्षित) हुए हो, अत: एक बार वमन किये हुए कामभोगों (सांसारिक पदार्थों) को पुनः मत पीना (सेवन करना)। (अब इस अनागरधर्म के सम्यक् अनुष्ठान में) क्षणमात्र का भी प्रमाद मत करो।
३०. अवउज्झिय मित्तबन्धवं विउलं चेव धणोहसंचयं।
मा तं बिइयं गवेसए समयं गोयम! मा पमायए॥ [३०] मित्र, बान्धव और विपुल धनराशि के संचय को छोड़कर पुनः उनकी गवेषणा (तलाशआसक्तिपूर्ण सम्बन्ध की इच्छा ) मत कर। (अंगीकृत श्रमणधर्म के पालन में) एक क्षण का भी प्रमाद न कर।
३१. नहु जिणे अज दिस्सई बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए।
संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम! मा पमायए॥ [३१] (भविष्य में लोग कहेंगे-) आज जिन नहीं दीख रहे हैं और जो मार्गदर्शक हैं वे अनेक मत के (एक मत के नहीं) दीखते हैं। किन्तु इस समय तुझे न्यायपूर्ण (अथवा पार ले जाने वाला, मोक्ष) मार्ग उपलब्ध है। अतः गौतम! समयमात्र का भी प्रमाद मत कर।
__३२. अवसोहिय कण्टगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं।
गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम! मा पमायए॥ [३२] हे गौतम! (तू) कण्टकाकीर्ण पथ छोड़कर महामार्ग (महापुरुषों द्वारा सेवित मोक्ष-मार्ग) पर आया है। अतः दृढ निश्चय के साथ बहुत संभलकर इस मार्ग पर चल। एक समय का भी प्रमाद करना उचित नहीं है।
३३. अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमेवगाहिया।
पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम! मा पमायए॥ __ [३३] दुर्बल भारवाहक जैसे विषम मार्ग पर चढ़ जाता है, तो बाद में पश्चाताप करता है, उसकी तरह, हे गौतम! तू विषम मार्ग पर मत जाना; अन्यथा तुझे भी बाद में पछताना पड़ेगा। अत: समयमात्र का भी प्रमाद मत कर।
३४. तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ।
अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम! मा पमायए। [३४] हे गौतम! तू विशाल महासमुद्र को तो पार कर गया है, अब तीर (किनारे) के पास पहुँच कर क्यों खड़ा है? उसके पार पहुंचने में शीघ्रता कर। समयमात्र का भी प्रमाद न कर।