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दशम अध्ययन : द्रुमपत्रक
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मिच्छत्तनिसेव—मिथ्यात्वनिषेवक का तात्पर्य है - अतत्त्व में तत्त्वरुचि मिथ्यात्व है । जीव अनादिकालिक भवों से अभ्यस्त होने से तथा गुरुकर्मा होने से प्रायः मिथ्यात्व में ही प्रवृत्त रहते हैं । इसलिए मिथ्यात्व का सेवन करने वाले बहुत से लोग हैं ।
इन्द्रियबल की क्षीणता बता कर प्रमादत्याग का उपदेश
२१. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । सोयबले यहायई समयं गोयम! मा पमायए ॥
[२१] गौतम ! तुम्हारा शरीर (प्रतिक्षण वय घटते जाने से) सब प्रकार से जीर्ण हो रहा है, तुम्हारे केश भी (वृद्धावस्था के कारण) सफेद हो रहे हैं तथा पहले जो श्रोत्रबल ( श्रवणशक्ति ) था, वह क्षीण हो रहा है । अत: एक क्षण भी प्रमाद मत करो ।
२२.
परिजूर ते सरीरयं केसा. पण्डुरया हवन्ति ते । से चक्खुबले या हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥
[२२] तुम्हारा शरीर सब प्रकार से जीर्ण हो रहा है, तुम्हारे सिर के बाल सफेद हो रहे हैं तथा पूर्ववर्ती नेत्रबल (आँखों का सामर्थ्य) क्षीण हो रहा है । अत: हे गौतम! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से घाणबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥
२३.
[२३] तुम्हारा शरीर (दिनानुदिन ) जीर्ण हो रहा है, तुम्हारे केश सफेद हो रहे हैं तथा पूर्ववर्ती घ्राणबल (नासिका से सूंघने का सामर्थ्य) भी घटता जा रहा है । ( ऐसी स्थिति में) गौतम ! एक समय का भी प्रमाद मत करो।
२४.
परिजूर ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । जे जिब्भ-बले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥
[२४] तुम्हारा शरीर (प्रतिक्षण) सब प्रकार से जीर्ण हो रहा है, तुम्हारे केश सफेद हो रहे हैं तथा तुम्हारा (रसग्राहक) जिह्वाबल (जीभ का रसग्रहण - सामर्थ्य) नष्ट हो रहा है। अतः गौतम ! क्षणभर का भी प्रमाद मत करो।
२५. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से फास-बले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥
[२५] तुम्हारा शरीर सब तरह से जीर्ण हो रहा है, तुम्हारे केश सफेद हो रहे हैं तथा तुम्हारे स्पर्शनेन्द्रिय की स्पर्शशक्ति भी घटती जा रही है। अतः गौतम! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो ।
२६. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते ।
.से सव्वबले य हायई समयं गोयम! मा पमायए ॥
१. मिथ्याभावो मिथ्यात्वं- अतत्त्वेऽपि तत्त्वप्रत्ययरूपं तं निषेवते यः स मिध्यात्वनिषेवको । जनो-लोको अनादि भवाऽभ्यस्ततया गुरुकर्मतया च तत्रैव च प्रायः प्रवृत्तेः । - बृहद्वृत्ति, पत्र ३३७