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दशम अध्ययन : द्रुमपत्रक
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परन्तु है तो वह भी थोड़े ही समय का। सोपक्रम आयुष्य तो और भी अस्थिर है, क्योंकि विष, शस्त्र आदि से वह बीच में कभी भी समाप्त हो सकता है। निष्कर्ष यह है कि मनुष्य-जीवन का कोई भरोसा नहीं है। इस स्वल्पकालीन आयुष्य वाले जीवन में ही कर्मों को क्षय करना है; अतः धर्माराधन में एक क्षण भी प्रमाद मत करो।
राइगणाण-रात्रिगणानां - रात्रिगण दिवसगण के बिना हो नहीं सकते इसलिए उपलक्षण से यहाँ दिवसगण भी लिए गए हैं। अतः इसका अर्थ हुआ—रात्रि-दिवससमूह।२ मनुष्यजन्मप्राप्ति की दुर्लभता बताकर प्रमादत्याग का उपदेश
४. दुल्लहे खल माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं।
- गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम! मा पमायए॥ [४] (विश्व के पण्यविहीन) समस्त प्राणियों को चिरकाल तक भी मनुष्यजन्म पाना दर्लभ है। (क्योंकि मनुष्यगविघातक) कर्मों के विपाक (-उदय) अत्यन्त दृढ (हटाने में दुःशक्य) होते हैं।
५. पुढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
काल संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए॥ [५] पृथ्वीकाय में गया हुआ (उत्पन्न हुआ) जीव उत्कर्षतः (-अधिक-से-अधिक) असंख्यात (असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी) काल तक (उसी पृथ्वीकाय में) रहता (जन्म-मरण करता रहता) है। इसलिए गौतम ! (इस मनुष्यदेह में रहते हुए धर्माराधन करने में) एक समय का भी प्रमाद मत करो।
६. आउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए॥ [६] अप्काय में गया हुआ जीव उत्कृष्टतः असंख्यात काल तक (उसी रूप में, वहाँ जन्म-मरण करता) रहता है। अत: गौतम! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो।
७. तेउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए॥ [७] तेजस्काय ( अग्निकाय ) में गया हुआ जीव उत्कृष्टतः असंख्य काल तक ( उसी रूप में ) रहता है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत करो।
८. वाउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए । [८] वायुकाय में गया हुआ जीव उत्कृष्टतः असंख्यात काल तक रहता है। अत: गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो।
९. वणस्सइकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालमणन्तदुरन्तं समयं गोयम! मा पमायए॥ १. (क) उत्तराध्ययननियुक्ति, गा. ३०८ (ख) बृहवृत्ति, पत्र ३३३ २. बृहद्वृत्ति, पत्र ३३३