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उत्तराध्ययनसूत्र
[९] वनस्पतिकाय में उत्पन्न हुआ जीव उत्कृष्टतः दुःख से समाप्त होने वाले अनन्तकाल तक (वनस्पतिकाय में ही जन्म-मरण करता ) रहता है। इसलिए हे गौतम! समयमात्र का भी प्रमाद न करो।
१०. बेइन्दिकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
___ कालं संखिजसन्नियं समयं गोयम! मा पमायए॥ [१०] द्वीन्द्रिय काय-पर्याय में गया (उत्पन्न) हुआ जीव अधिक-से-अधिक संख्यातकाल तक रहता है। अतः गौतम! क्षणभर का भी प्रमाद मत करो।
११. तेइन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालं संखिजसन्नियं समयं गोयम! मा पमायए॥ [११] त्रीन्द्रिय अवस्था में गया (उत्पन्न) हुआ जीव उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है, अतः हे गौतम! समयमात्र भी प्रमाद मत करो।
१२. चउरिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
___कालं संखिजसन्नियं समयं गोयम! मा पमायए॥ [१२] चतुरिन्द्रिय अवस्था में गया हुआ जीव उत्कृष्टतः संख्यात काल तक (उसी में) रहता है। अतः गौतम! समयमात्र भी प्रमाद मत करो।
१३. पंचिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
सत्तट्ठ-भवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमायए॥ [१३] पंचेन्द्रियकाय में उत्पन्न हुआ उत्कृष्टतः सात या आठ भवों तक (उसी में जन्मता-मरता) रहता है। इसलिए गौतम! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो।
१४. देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
इक्किक्क-भवग्गहणे समयं गोयम! मा पमायए॥ [१४] देवयोनि और नरकयोनि में गया हुआ जीव उत्कृष्टत: एक-एक भव (जन्म) तक रहता है। इसलिए गौतम! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो।
१५. एवं भव-संसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहिं।
जीवो पमाय-बहुलो समयं गोयम! मा पमायए॥ [१५] इस प्रकार प्रमादबहुल (अनेक प्रकार के प्रमादों से व्याप्त) जीव शुभाशुभकर्मों के कारण जन्म-मरण रूप संसार में परिभ्रमण करता है। इसलिए हे गौतम! क्षणभर भी प्रमाद मत करो।
विवेचन-मनुष्यजन्म की दुर्लभता के १२ कारण,- प्रस्तुत गाथाओं के द्वारा मनुष्यजन्म की दुर्लभता के बारह कारण बताए गए हैं-(१) पुण्यरहित जीव द्वारा मनुष्यगति-विघातक कर्मों का क्षय किये विना चिरकाल तक मनुष्यजीवन पाना दुर्लभ है, (२ से ५) पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के जीवों में उसी पर्याय में असंख्यातकाल तक बार-बार जन्ममरण, (६) वनस्पतिकाय के जीवों में अनन्तकाल तक बार-बार जन्ममरण, (७-८-९) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्कृष्टतः संख्यातकाल की अवधि तक रहना, (१०) पंचेन्द्रिय अवस्था में ७-८ भवों तक निरन्तर जन्मग्रहण, (११-१२) देवगति और नरकगति