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________________ नवम अध्ययन : नमिप्रव्रज्या १३७ सासयं-दो रूप, दो अर्थ-(१)-स्वाश्रय स्व यानी आत्मा का आश्रय – घर, अथवा (२) शाश्वत - नित्य (प्रसंगानुसार) गृह । पंचम प्रश्नोत्तर : चोर-डाकुओं से नगररक्षा करने के सम्बन्ध में २७. एयमढं निसामित्ता हेउकारण-चोइओ। तओ नमिं रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी- ।। [१७] (अनन्तरोक्त नमि राजर्षि के) इस वचन को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहा - २८. 'आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे। नगरस्स खेमं काऊणं तओ गच्छसि खत्तिया!॥' [२८] हे क्षत्रिय! पहले आप लुटेरों को, प्राणघातक डाकुओं, गांठ काटने वालों (गिरहकटों) और तस्करों (सदा चोरी करने वालों) का दमन करके, नगर का क्षेम (अमन-चैन) करके फिर (दीक्षा लेकर) जाना। २९. एयमढं निसामित्ता हेउकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥ [२८] इस पूर्वोक्त बात को सुन कर हेतु और कारणों से प्रेरित हुए नमि राजर्षि ने देवेन्द्र को यों कहा ३०. 'असई तु मणुस्सेहिं मिच्छादण्डो पगँजई। अकारिणोऽत्थ बज्झन्ति मुच्चई कारगो जणो॥' [३०] मनुष्यों के द्वारा अनेक बार मिथ्या दण्ड का प्रयोग (अपराधरहित जीवों पर भी अज्ञान या अहंकारवश दण्डविधान) कर दिया जाता है। (चौर्यादि अपराध) न करने वाले यहाँ बन्धन में डाले (बांधे) जाते हैं और वास्तविक अपराधकर्ता छूट जाते हैं। विवेचन – इन्द्र-कथित हेतु और उदाहरण – 'आप धर्मिष्ठ क्षत्रिय शासक होने से चोर आदि अधार्मिक व्यक्तियों का निग्रह करके नगर में शान्ति स्थापित करने वाले हैं। जो धार्मिक शासक होता है, वह अधार्मिकों का निग्रह करके नगर में शान्ति स्थापित करता है। जैसे भरतादि नृप, यह हेतु है। चोरादि अधार्मिक व्यक्तियों का निग्रह करके नगरक्षेम किये बिना आपका शासकत्व एवं धार्मिकत्व घटित नहीं हो सकता, यह कारण है। अतः अधार्मिकों का निग्रह करके नगरक्षेम किये बिना आपका दीक्षा लेना अनुचित नमि राजर्षि के उत्तर का तात्पर्य - हे विप्र ! प्रजापीड़क जनों का दमन करके नगर में शान्ति स्थापित करने के बाद प्रव्रजित होने का आपका कथन एकान्ततः उपादेय नहीं है; क्योंकि बहुत वार वास्तविक १. बृहदवृत्ति, पत्र ३१२ २. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ३१२ (ख) उत्तरा., प्रियदर्शिनी टीका, भा. २, पृ. ४१०
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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