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नवम अध्ययन : नमिप्रव्रज्या
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[७] हे राजर्षि! मिथिला नगरी में, महलों और घरों में कोलाहल (विलाप एवं क्रन्दन) से व्याप्त दारुण (हृदय विदारक) शब्द क्यों सुने जा रहे हैं?
मट्ठे निसामित्ता उकारण - चोइओ । ओ नमी रायरसी देविन्दं इणमब्बवी - ॥
[८] (देवेन्द्र के) इस प्रश्न को सुन कर हेतु और कारण से सम्प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से यह (वचन) कहा
८.
'मिहिलाए, चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे । पत्त - पुप्फ- फलोवेए बहूणं बहुगुणे सया - ॥ १०. वाएण हीरमाणंमि चेइयंमि मणोरमे । दुहिया अरणा अत्ता एए कन्दन्ति भो ! खगा ॥'
[९-१०] मिथिला नगरी में एक उद्यान (चैत्य) था; (उस में) ठंडी छाया वाला, मनोरम, पत्तों, फूलों और फलों से युक्त बहुत-से पक्षियों का सदैव अत्यन्त उपकारी (बहुगुणसम्पन्न ) एक वृक्ष था । प्रचण्ड आँधी से (आज) उस मनोरम वृक्ष के हट जाने पर, हे ब्राह्मण ! ये दुःखित, अशरण और पीड़ित पक्षी आक्रन्दन कर रहे हैं।
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९.
विवेचन - सक्को माहणरूवेण : आशय – इन्द्र ब्राह्मण के वेष में क्यों आया? इसका कारण बृहद्वृत्तिकार बताते हैं कि राज्य करते हुए भी ऋषि के समान नमि राजर्षि राज्यऋद्धि छोड़ कर भागवती दीक्षा ग्रहण करने के लिए उद्यत थे। उस समय उनकी त्यागवृत्ति की परीक्षा करने के लिए स्वयं इन्द्र ब्राह्मण के वेष में दीक्षास्थल पर आया और उनसे तत्सम्बन्धित कुछ प्रश्न पूछे । १
पासाएसु गिहेसु : प्रासाद और गृह में अन्तर - सात या इससे अधिक मंजिल वाला मकान प्रासाद या महल कहलाता है, जबकि साधारण मकान को गृह - घर कहते हैं । २
हेउकारण - चोइओ - साध्य के बिना जो न हो, उसे हेतु कहते हैं और जो कार्य से अव्यवहित पूर्ववर्ती हो, उसे कारण कहते हैं । कारण के बिना कार्य की उत्पत्ति कदापि संभव नहीं है। यही हेतु और कारण में अन्तर है। इन्द्रोक्त वाक्य में हेतु इस प्रकार है- आपका यह अभिनिष्क्रमण अनुचित है, क्योंकि इससे समस्त नगरी में आक्रन्द, विलाप एवं दारुण कोलाहल हो रहा है। कारण इस प्रकार है-यदि आप अभिनिष्क्रमण न करते तो इतना हृदयविदारक कोलाहल न होता। इस हृदयविदारक कोलाहल का कारण आपका अभिनिष्क्रमण । इस हेतु और कारण से प्रेरित । ३
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१. बृहदवृत्ति, पत्र ३०८ २. वही, पत्र ३०८
३. (क) 'निश्चितान्ययथाऽनुपपत्त्येकलाक्षणो हेतुः । '
(ख) 'कार्यादव्यवहितप्राक् क्षणवर्तित्वं कारणत्वम् ।' (ग) बृहद्वृत्ति, पत्र ३०९
-प्रमाणनयतत्त्वालोक, सू. ११ - तर्कसंग्रह