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________________ नवमं अज्झयणं : नवम अध्ययन नमिपव्वज्जा : नामिप्रव्रज्या नमराज : जन्म से अभिनिष्क्रमण तक १९. चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्त- मोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई ॥ [१] (महाशुक्र नामक ) देवलोक से च्युत होकर नमिराज का जीव मनुष्यलोक में उत्पन्न हुआ । उसका मोह उपशान्त हुआ, जिससे पूर्व जन्म (जाति) का उसे स्मरण हुआ । २. [२] भगवान् नमि पूर्वजन्म का स्मरण करके अनुत्तर (सर्वोत्कृष्ट) (चारित्र - ) धर्म (के पालन) के लिए स्वयं सम्बुद्ध बने । अपने पुत्र को राज्य पर स्थापित कर नमि राजा ने अभिनिष्क्रमण किया ( प्रव्रज्या ग्रहण की। जाई सरित्तु भवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिणिक्खमई नमी राया ॥ ३. १. से देवलोग - सरिसे अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ [३] (अभिनिष्क्रमण से पूर्व ) नमि राजा श्रेष्ठ अन्तःपुर में रह कर देवलोक के भोगों के सदृश उत्तम भोगों को भोग कर (स्वयं) प्रबुद्ध हुए और उन्होंने भोगों का परित्याग किया। ४. मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खन्तो एगन्तमहिट्ठिओ भयवं ॥ [४] भगवान् नमि ने पुर और जनपद सहित अपनी राजधानी मिथिला, सेना, अन्तःपुर (रनिवास ) और समस्त परिजनों को छोड़ कर अभिनिष्क्रमण किया और एकान्त का आश्रय लिया । ५. कोलाहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयन्तंमि । तइया रायरिसिंमि नमिंमि अभिणिक्खमन्तंमि ॥ [५] नमि राजर्षि जिस समय अभिनिष्क्रमण करके प्रव्रजित हो रहे थे, उस समय मिथिला नगरी में ( सर्वत्र ) कोलाहल - सा होने लगा । विवेचन-सरइ पोराणियं जाई - पुराण जाति - आत्मवाद की दृष्टि से जन्म की परम्परा अनादि है, इसलिए इसे पुराणजाति कहा है, अर्थात् पूर्वजन्म की स्मृति । इसे जातिस्मरणज्ञान कहते हैं, जो मतिज्ञान का एक भेद (रूप) है। इसके द्वारा पूर्ववर्ती संख्यात जन्मों तक का स्मरण हो सकता है। (ख) 'जातिस्मरणं तत्त्वाभिनिबोधविशेष: ' - आचारांग १/१/४ (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ३०६ (ग) जातिस्मरणं तु नियमत: संख्येयान् ।
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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