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उत्तराध्ययनसूत्र नमिप्रव्रज्या की साधना करना श्रेष्ठ है। क्योंकि वही सु-आख्यात धर्म है। स्वर्णादि का भण्डार बढ़ा कर आकांक्षापूर्ति की आशा रखना व्यर्थ है, इच्छाएँ अनन्त हैं, उनकी पूर्ति होना असम्भव है, अतः निराकांक्ष, निस्पृह बनना ही श्रेष्ठ है। कामभोग प्राप्त हों, चाहे अप्राप्त, दोनों की अभिलाषा दुर्गति में ले जाने वाली है, अतः कामभोगों की इच्छाएँ तथा तज्जनित कषायों का त्याग करना ही मुमुक्षु के लिए हितकर है। ___नमि राजर्षि के उत्तर सुन कर देवेन्द्र अत्यन्त प्रभावित होकर परम श्रद्धाभक्तिवश स्तुति, प्रशंसा एवं वन्दना करके अपने स्थान को लौट जाता है।
(क) उत्तरा. मूलपाठ, अ.९, गा.७ से ६० तक (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका, भा. २, पृ. ३६१ से ३६४