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________________ अष्टम अध्ययन : कापिलीय ताई - दो रूप : तीन अर्थ (१-२ ) तायी - त्रायी - (१) दुर्गति से आत्मा की जो रक्षा (-त्राण) करता है, अथवा (२) जो षट्काय का त्राता - रक्षक है। (३) तायी — तादृक् - वैसा, उन (बुद्धादि ) जैसा । १ भोगामिसदोसविसणे आमिष शब्द : अनेक अर्थों में- (१) वर्तमान में 'आमिष' का अर्थ 'मांस' किया जाता है। (२) प्राचीन काल में आसक्ति के हेतुभूत पदार्थों के अर्थ में आमिष शब्द प्रयुक्त होता था । जैसे कि 'अनेकार्थकोष' में आमिष के 'फल, सुन्दर आकार, रूप, सम्भोग, लोभ और लंचा 'ये अर्थ मिलते हैं। पंचासकप्रकरण में आहार या फल आदि के अर्थ में इसका प्रयोग हुआ है। बौद्धसाहित्य में भोजन, विषयभोग आदि अर्थों में 'आमिष' शब्द प्रयोग हुआ है । यथा— आमिष - संविभाग, आमिषदान, आदि । २ बुद्धिवोच्चत्थे - अर्थ और भावार्थ - ( १ ) हित और निःश्रेयस में जिसकी विपरीत बुद्धि है। (२) हित और निःश्रेयस में अथवा हित और निःश्रेयस सम्बन्धी बुद्धि उनकी प्राप्ति की उपाय – विषयक मति हितनि:श्रेयसबुद्धि है। उसमें जो विपर्ययवान् है । ३ बज्झइ — भावार्थ — बंध जाता है अर्थात् — श्लिष्ट हो (चिपक) जाता है । खेलंमि—तीन रूप : तीन अर्थ - ( १ ) श्लेष्म (३) क्ष्वेल — थूक (निष्ठीवन) । ४ अधीरपुरिसेहि—दो अर्थ — अधीर पुरुषों के द्वारा - (१) अबुद्धिमान् मनुष्यों के द्वारा, (२) असत्त्वशील पुरुषों द्वारा । ५ संति सुव्वया - दो रूप : दो व्याख्या - ( १ ) सन्ति सुव्रताः — सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान से अधिष्ठित होने से जिनके हिंसाविरमणादिव्रत शुभ या शुद्ध - निष्कलंक है। (२) शान्ति - सुव्रताः- शान्ति से उपलक्षित सुव्रत वाले हिंसा से सर्वथा विरत होने का उपेदश ७. १. ११९ 'समणा मु' एगे वयमाणा पाणवहं मिया अयाणन्ता । मन्दा नरयं गच्छन्ति बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥ [७] 'हम श्रमण हैं' — यों कहते हुए भी कई पशुसम अज्ञानी जीव प्राणवध को नहीं समझते। वे (ख) उत्तराध्ययन (अंग्रेजी) पृ० ३०७ - ३०८, पवित्र सन्त व्यक्ति आदि । (क) बृहद्वृत्ति, पत्र २९१ (ग) दीघनिकाय, पृ० ८८, विसुद्धिमग्गो, पृ० १८० २. (क) सहामिषेण पिशितरूपेण वर्त्तते इति सामिषः (च) बुद्धचर्या पृ० १०२, ४३२, इतिवृत्तक, पृ० ८६. कफ, (२) क्ष्वेट या क्ष्वेद — चिकनाई श्लेष्म, (ख) फले सुन्दराकाररूपादौ संभोगे लोभलंचयोः । -- अनेकार्थकोष, पृ० १३३० (ग) पंचासकप्रकरण ९ / ३१ (घ) 'भोगाः - मनोज्ञाः शब्दादयः, ते च ते आमिषं चात्यन्तगृद्धिहेतुतया भोगामिषम् ।' - बृहद्वृत्ति पत्र २९१ (ङ) 'भुज्यन्त इति भोगाः, यत्सामान्यं बहुभिः प्रार्थ्यते तदं आमिषम्, भोग एवं आमिषं भोगामिषम् ।' ३. (क) उत्त० चूर्णि, पृ० १७२ ४. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र २९१ ५. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र २९२ -उ० चू० पृ० १७२ (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २९१ (ख) उत्तरा . ( सरपेंटियर), पृ० ३०८ (ग) तत्त्वार्थराजवार्तिक ३ / ३६, पृ० २०३ ६. वही, पत्र २९२
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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