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________________ सप्तम अध्ययन : उरभ्रीय १०९ विवेचना-ग्यारहवीं गाथा में दो दृष्टान्त-(१) एक काकिणी के लिए हजार कार्षापण को गँवा देना, (२) आम्रफलासक्त राजा के द्वारा जीवन और राज्य खो देना। इन दोनों दृष्टान्तों का सारांश अध्ययनसार में दिया गया है। कागिणीए-काकिणी शब्द के अर्थ-(१) चूर्णि के अनुसार-एक रुपये का ८० वाँ भाग, अथवा वीसोपग का चतुर्थ भाग। (२) बृहद्वृत्ति के अनुसार-बीस कौड़ियों की एक-एक काकिणी। (३) 'संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी' के अनुसार-पण के चतुरंश की काकिणी होती है। अर्थात् बीस मासों का एक पण होता है तदनुसार ५ मासों की एक काकिणी (तौल के रूप में) होती है। (४) कोश के अनुसार काकिणी का अर्थ कौड़ी अथवा २० कौड़ी के मूल्य का एक सिक्का है। सहस्सं-सहस्रकार्षापण-सहस्र शब्द से चूर्णिकार और बृहद्वृत्तिकार का अभिमत हजार कार्षापण उपलक्षित है। कार्षापण एक प्रकार का सिक्का था, जो उस युग में चलता था। वह सोना, चांदी, तांबा, तीनों धातुओं का होता था। स्वर्णकार्षापण १६ माशा का, रजतकार्षापण ३२ रत्ती का और ताम्रकार्षापण ८० रत्ती के जितने भार वाला होता था।२ । ___अणेगवासानउया-वर्षों के अनेक नयुत-नयुत एक संख्यावाचक शब्द है। वह पदार्थ की गणना में और आयुष्यकाल की गणना में प्रयुक्त होता है। यहाँ आयुष्काल की गणना की गई है। इसी कारण इसके पीछे वर्ष शब्द जोड़ना पड़ा। एक नयुत की वर्षसंख्या ८४ लाख नयुतांग है। जीयंति-हार जाते हैं। जाणि-दिव्यसुखों को। तीन वणिकों का दृष्टान्त १४. जहा य तिन्नि वाणिया मूलं घेत्तूण निग्गया। ____ एगोऽत्थ लहई लाहं एगो मूलेण आगओ॥ १५. एगो मूलं पि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह॥ [१४-१५] जैसे तीन वणिक् मूलधन लेकर व्यापार के लिए निकले। उनमें से एक लाभ प्राप्त करता है, एक सिर्फ मूलधन को लेकर लौट आता है और एक वणिक् मूलधन को भी गँवा कर आता है। यह व्यवहार (-व्यापार) की उपमा है। इसी प्रकार धर्म के विषय में भी जान लेना चाहिए। १६. माणुसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई भवे। ___ मूलच्छेएण जीवाणं नरग-तिरिक्खत्तणं धुवं॥ १. (क) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ. १३१ (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २७२ (ग) A Sanskrit English Dictionary, P. 267 (घ) पाइअसद्दमहण्णवो, पृ. २३५ २. (क) उत्तरा. चूर्णि, पृ. १६२ (ख) बृहद्वत्ति, पत्र २७६ः सहस्रं-दशशतात्मकं, कार्षापणानामिति गम्यते। (1) M.M. Williams, Sanskrit English Dictionary, P. 276 ३. (क) उत्तरा. बृहद्वृत्ति, पत्र २७३ (ख) अनुयोगद्वारसूत्र. ४. बृहद्वृत्ति, पत्र २७७
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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