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सत्तमं अज्झयणं : सप्तम अध्ययन
उरब्भिज्जं : उरमीय क्षणिक विषयसुखों के विषय में अल्पजीवी परिपुष्ट मेंढे का रूपक
१. जहाएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज एलयं।
___ ओयणं जवसं देजा पोसेज्जा वि सयंगणे॥ __[१] जैसे कोई (निर्दय मनुष्य) संभावित पाहुने के उद्देश्य से एक मेमने (भेड़ के बच्चे) का पोषण करता है। उसे चावल, मूंग, उड़द आदि खिलाता (देता) है और उसका पोषण भी अपने गृहांगण में करता है।
२. तओ से पुढे परिवूढे जायमेए महोदरे।
पीणिए विउले देहे आएसं परिकंखए॥ [२] इससे (चावल आदि खिलाने से) वह मेमना पुष्ट, बलवान्, मोटा-ताजा और बड़े पेट वाला हो जाता है। अब वह तृप्त और विशाल शरीर वाला मेमना आदेश (-पाहुने) की प्रतीक्षा करता है अर्थात् तभी तक जीवित है जब तक पाहुना न आए।
३. जाव न एइ आएसे ताव जीवइ से दुही।
__ अह पत्तंमि आएसे सीसं छेत्तूण भुजई॥ [३] जब तक (उस घर में) पाहुना नहीं आता है, तब तक ही वह बेचारा दु:खी होकर जीता है। बाद में पाहुने के आने पर उसका सिर काट कर भक्षण कर लिया जाता है।
४. जहा खलु से उरब्भे आएसाए समीहिए।
एवं बाले अहम्मिटे ईहई,नरयाउयं॥ ___ [४] जैसे मेहमान के लिए प्रकल्पित (समीहित) वह मेमना वस्तुतः मेहमान की प्रतीक्षा करता है, वैसे ही अधर्मिष्ठ (पापरत) अज्ञानी जीव भी वास्तव में नरक के आयुष्य की प्रतीक्षा करता है।
विवेचन—आएस—जिसके आने पर घर के लोगों को उसके आतिथ्य के लिए आदेश (आज्ञा) दिया जाता है, उसे आदेश, अतिथि या पाहुना कहा जाता है। आएस के संस्कृत में दो रूप होते हैं'आदेश' और 'आवेश।' दोनों का अर्थ एक ही है।
जवसं—यवस के अर्थ-चूर्णि और वृत्ति में इसका अर्थ किया गया है-मूंग, उड़द आदि धान्य। शब्दकोष में अर्थ किया गया है-तृण, घास, गेहूँ आदि धान्य। १. (क) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ. १५८
(ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २७२ २. (क) 'यवसो मुद्माषादि-बृहद्वृत्ति, पत्र २७२ (ख) सुखबोधा, ११६ (ग) चूणि, पृ.१५८
(घ) पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. ४३९