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प्रथम अध्ययन : विनयसूत्र
होकर शिष्य को सूत्रपाठ ग्रहण कराए, (२) अर्थ को प्रयत्नपूर्वक सुनाए, (३) जिस सूत्र के लिए जो योगोद्वहन (उपधान तप आदि) हो, उसकी विधि परिणामपूर्वक बताए, (४) शास्त्र को अधूरा न छोड़ कर सम्पूर्ण शास्त्र की वाचना दे। विनीत शिष्य द्वारा करणीय भाषा-विवेक
२४. मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणिं वए।
भासा-दोसं परिहरे मायं च वजए सया॥ [२४.] भिक्षु असत्य (मृषाभाषा) का परिहार (त्याग) करे, निश्चयात्मक भाषा न बोले; भाषा के (अन्य परिहास, संशय आदि) दोषों को भी छोड़े तथा माया (कपट) का सदा परित्याग करे।
२५. नलवेज पुट्ठो सावजं न निरठें न मम्मयं।
अप्पणट्ठा परट्ठा वा उभयस्सन्तरेण वा॥ [२५.] (किसी के द्वारा) पूछने पर भी अपने लिए, दूसरों के लिए अथवा दोनों के लिए या निष्प्रयोजन ही सावध (पापकारी भाषा) न बोले, न निरर्थक बोले और न मर्मभेदी वचन कहे।
विवेचन—उभयस्संतरेण वा-उभय-अपने और दूसरे दोनों के लिए , अथवा बिना ही प्रयोजन के (अकारण) न बोले। अकेली नारी के साथ अवस्थान-संलाप-निषेध
२६. समरेसु अगारेसु सन्धीसु य महापहे।
___ एगो एगित्थिए सद्धिं नेव चिट्ठे न संलवे॥ [२६.] लोहार आदि की शालाओं (समरों) में, घरों में, दो घरों के बीच की सन्धियों में या राजमार्गों (महापथों-सड़कों) पर अकेला (साधु) अकेली स्त्री के साथ न तो खड़ा रहे और न संलाप (बातचीत)
करे।
विवेचन–समर शब्द के ५ अर्थ फलित होते हैं—(१) लोहार की शाला, (२) नाई की दूकान, लोहकारशाला, खरकुटी या अन्य नीचस्थान, (३) युद्धस्थान, जहाँ एक साथ दोनों पक्ष के शत्रु एकत्र होते हैं, (४) समूह का एकत्र होना, मिलना या मेला और (५) 'स्मर' ऐसा रूपान्तर करने पर कामदेवसम्बन्धी स्थान, व्यभिचार का अड्डा या कामदेवमन्दिर, अर्थ भी हो सकता है।३ १. बृहद्वृत्ति, पत्र ५५ २. 'उभयस्से त्ति'-आत्मनः परस्य च प्रयोजनमिति गम्यते, अंतरेण वेत्ति—बिना वा प्रयोजनमित्युपस्कारः।
- बृहद्वृत्ति पत्र ५७, सुखबोधा पत्र ८ ३. (क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० ३७
(ख) बृहद्वृत्ति, पत्र ५७, सममरिभिर्वर्तन्ते इति समराः। (1) Samara-Coming together, meeting concourse, confluence.--Sanskrit-Eng. Dictionary p. 1170 (घ) 'समर—स्मरगृह या कामदेवगृह।'-अंगविज्जा भूमिका, पृ०६३